Saturday, July 16, 2016

ख़ामोशी

है ख़ामोशी का मंजर चारो ओर ,
घनघोर अँधेरा पसरा है ,
है साथ नहीं कोई मेरे ,
तन्हाइयो मे टूट कर दिल बिखरा है |

मैं देख रहा इधर उधर ,
कही कोई दिख जाए ,
तन्हाई के इस आलम मे ,
कोई अपना मिल जाए |

मैं हो कर भी साथ सभी के ,
ख़ुद को तनहा पाता हु ,
वक़्त के साथ बदलते देख अपनो को ,
मायूस हो जाता हु ।

मैं करता इजहार खुल के ,
अपनो से मोहब्बत का ,
पर कोई सुन नहीं पाता ,
अक्सर सोच जिसे मैं ख़ामोश हो जाता ।

काश इस शहर मे ,
हमें कोई अपना मिल जायें ,
चल रहाँ दौर जो ख़ामोशी का ,
शायद वो थम जाए ।

है भरोसा ,
ख़ामोशी तु एक रोज़ दूर जायेंगी ,
जो हो गया वास्ता हलचल से मेरा ,
तू मुझ जैसे ख़ुद को तनहा पायेंगी ।

उस रोज़ ख़ामोशी से ख़ामोश हो ,
तू ख़ूब आँसू बहायेंगीं ,
ख़ामोशी भी ख़ामोश हो कर ,
कहीं गुम हो जायेंगी ।

No comments: