Tuesday, November 1, 2016

अड़सा ( कंजस्टेड )

कही रिश्तो में अड़सा होता है ,
कही अपनों में अड़सा होता है ,
हमारी तो मोहब्बत है अड़सा ,
जो हर वक़्त यादो में साथ रहता है |

कभी एक बिस्तर पे हम अडस कर सोते थे ,
पर कोई शिकायत को ना था आता ,
आज कमरे हो गए है अलग अलग ,
फिर भी उन्हें अड़सा है नजर आता |

मोहब्बत गैरो से इतनी भी ठीक नहीं ,
कही अपने बहुत पीछे छूट जाए ,
ज़िन्दगी तो है खुद एक अड़सा ,
पर कही आप रिश्तो में ना अडस जाए |

हमे फक्र है अपनों से मोहब्बत की ,
सिवा उनके , कुछ और समझ नहीं आता ,
दुःख होता है देख उन्हें ,
जिन्हें अपनों से अड़सा ,
गैरो से मोहब्बत हो जाता |

मोहब्बत अपनों से दिल से है ,
दूरियों से वो कहा कम हो पायेगी  ,
कर लो कितनी भी कोशिश ,
ऐ मेरे दोस्त ,
अड़से में ही सही ,
पर आखिरी सांस तक ,
ज़िन्दगी अपनों की खातिर मुस्कुराएगी |

अड़से से ही सही ,
अपनों को अपना के देखो ,
गैरो को ख्यालो से हटा के देखो
अड़से से मोहब्बत हो जायेगी ,
हर किसी अपने में ,
ख़ुद की ख़ातिर ख़ुशी नजर आएगी |

अड़स रहीं ज़िन्दगी का अपना ही मज़ा हैं ,
खुल के तो हर कोई जिया हैं ,
अपनो से मोहब्बत ही तो हैं 'अड़सा' ,
इतने सितम के बाद भी ,
जो साथ खड़ा हैं ।

कई लोगों से बातचीत और उनके अनुभव के आधार पर लिखी गई कविता ।

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