Thursday, July 28, 2016

साथ

पहली दफ़ा नज़र गयीं तो ,
कुछ वक़्त गुज़र चुका था ,
हो गई थी मायूस वो ,
अनजाने मे मैं आगे बड़ चला था ।

मिली नज़र जो पहली दफ़ा ,
उसको ख़ुद से जुदा पाया  ,
देख जिसे मैं ख़ुद को ,
कुछ वक़्त ख़ामोशी को था दे आया ।

उसकी हँसी , उसका अन्दाज़ ,
उसकी निगाहे , उसके अल्फ़ाज़ ,
सब बेचारगी मे पड़े थे ,
और वो यू ही सामने मायूस खड़े थे ।

मिलते ही निगाहे ,
वो उन्हें चुराने लगीं ,
दिल मे हो रहीं हलचल को ,
मुस्कुरा के छिपाने लगी ।

देखती है निगाहे उनकी फ़ुरसत से हमें ,
पर अब नज़रें नहीं चुराती ,
निगाहों से ही अब अक्सर वो ,
हर बात कह जाती ।

सिलसिला जो हुआ है शुरू ,
अब ना थम पायेगा ,
हैं हम हर पल साथ तेरे ,
ये बहुत जल्द समझ आएगा ।

No comments: