Tuesday, April 25, 2017

आवाज़

रोज़ सुबह हल्के अंधेरे में ,
चिड़ियाँ मधुर गीत गुनगुनाती है ,
तभी किसी कोने से ,
ज़ोर की आवाज़ आती हैं ।

मैं समझ नहीं पाता बोल ,
सो ख़ामोश हो जाता हु ,
एक दफ़ा फिर ख़ुद को ,
नींद की ओर ढकेल जाता हु ।

जब आती है ख़ामोशी लौट ,
शोर थम जाने के बाद ,
चिड़ियाँ फिर गुनगुनाती है ,
सुकून भरे गीत गाती है ।

आवाज़ से नहीं ,
अन्दाज़ से शिकायत हैं हमें ,
किसी धर्म से नहीं ,
इंसान से चाहत हैं हमें ।

जो सुनता वो शोर से ,
हम ज़ोर से ही चिल्लाते ,
क्यूँ खामखां दबी आवाज़ में ,
उसके दर को जाते ।

मैं मुझे पसंद है ,
इसका बिलकुल मतलब नहीं ,
वो उसे पसंद हैं ।

आवाज़ ज़रूरी हैं ,
उठाने के लिए ,
पर नींद से नहीं ,
कुछ गुनगुनाने के लिए ।

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