कभी दूर हो कर भी साथ होते थे ,
हाथो में थामे हर पल हाथ होते थे ,
होती थी लम्बी लम्बी बाते ,
छोटे छोटे ख्वाब होते थे।
निगाहे तो मिलती थी नहीं ,
अलफ़ाज़ भी लिख कर जाते थे ,
लिखी दास्तने दिल की बातो को ,
अपने लबों से वो पढ़ पाते थे।
दौर बदला बदली मोहब्बत ,
साथ होना पास होना और बाबू सोना ,
वक़्त के साथ इश्क़ और उसकी वजह ,
दोनों बदल जाते है ,
इस झूठे सच को ,
छोड़ हमें सब मान जाते है।
बुनते नहीं कोई ख्वाब अब ,
और ना ही इश्क़ में फ़ना हो पाते है ,
सच्चा समझ आज के इश्क़ को ,
कुछ वक़्त के बाद खुद उसे झुट्लाते है।
फ़िक्र होती मुझे उस रांझे की ,
जिसकी हीर कही खो गई ,
बदलते दौर में बदली नहीं मोहब्बत ,
बस उसकी मोहब्बत किसी और की हो गई।
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