किसी अनछुए शोर से ,
इस दफा गुजरने देना ,
दोनों ही ओर से ।
तुम रोक कर मुझको ,
अब और कितना जलाओगी,
खाक में मिलाते मिलाते मुझे ,
मुझमें ही मिल जाओगी ।
सब्र का बाढ़ तोड़ कर ,
हद से बेहद हो जाओ ,
एक और दफा शिद्दत से ,
पहेली बन जाओ ।
चंद लम्हों में पूरी जिंदगी ,
इस दफा जी आते हैं,
बन कर कोई ख़्वाब,
तुझसे गुजर जाते हैं ।
हां इस दफा .. थोड़ा ,
खैर छोड़ो,
कुछ नहीं ..
हम लौट जाते हैं ।।
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