खामोशी में मेरे शोर को ,
अब सुनना छोड़ दो ,
अपने हिस्से के गम भी ,
तुम मेरी ओर मोड़ दो ।
मैं इश्क़ निभा कर तुमसे ,
हर रोज़ तुम्हें रुलाता हूं,
कर के जुल्म खुद से ,
गुनहगार तुम्हें बताता हूं ।
फिर भी साए की तरह ,
तुम मेरे साथ चलती हो ,
मेरी ख्वाइशों के आगे ,
अपने अरमान कुचलती हो ।
ना पता दिन का तुम्हें,
ना रात का इंतजार है ,
मेरी ही दुनिया में ,
बसा तुम्हारा संसार है ।
सब कुछ लुटा कर भी ,
तुम कैसे मुस्कुरा लेती हो ,
छिपा कर हर गम अपना ,
मुझसे इश्क़ निभा लेती हो ।
सच सच बताना ,
मुझसे भी बेहतर ,
कैसे मुझे पढ़ रही हो ,
खुद से भी ज्यादा ,
मुझसे मोहब्बत कर रही हो ।।
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