Wednesday, January 3, 2024

तेरी झलक

गुजरते लम्हों के कई किस्से,
जब उससे गुजर रहे थे,
खामोश लबों से कम,
आंखो से वो सब कह रहे थे।

थम गया था पल उसका,
चंद लम्हों की ख्वाइश में,
अल्फाज़ की बारिश,
और खुशियों की आजमाइश में।

दर्द जो दिल में था,
अब आखों पर आने लगा,
आहिस्ता आहिस्ता झूठी मुस्कान,
पलकों पर छिपाने लगा ।

तूफान से उस रोज़ ,
कई अरसे के बाद गुजरा था,
शिद्दत से जब वो अजनबी,
किसी मुसाफ़िर से मिल रहा था।

दर्द में बहुत रह लिया दिल उसका,
अब शिद्दत से मुस्कुराने लगा,
बन कर अजनबी ही सही,
उन लम्हों में वो खो जाने लगा।

उस रात के किस्से,
जो उसके हिस्से होने लगे,
अजनबी के संग उन लम्हों को,
वो खुल कर वो जीने लगे ।

सुनो,

कह दो सब कुछ निगाहों से,
जो दिल में छिपा कर रखा है,
झूठी मुस्कान से चेहरे पर,
मुखौटा जो लगा रखा है ।

बन कर अजनबी "मुसाफ़िर" का,
चंद लम्हें जी आओ,
एक और दफा शिद्दत से,
खुल कर मुस्कराओ।

क्योंकि जचता है कोई नूर तुम पर ,
तो वो तुम्हारी मुस्कान हैं,
आंखो का काजल और .. 


कुछ नहीं.. बस इतना सा पैगाम है !