Tuesday, December 17, 2024

आदत

ये इश्क़ के जंजीरों में,
जो हर बार उलझ जाते थे,
वादा पूरी जिंदगी का कर के,
एक पल में ही तोड़ आते थे ।

क्यों नहीं ठहर कर,
हाले दिल तुमने जाना कभी,
इश्क़ के हर लम्हें में तुम थे जिसके,
उसको तुमने अपना माना नहीं ।

फूल से कोमल दिल को उसके,
तुमने कांटों से क्यों घेरा था,
इश्क़ में पड़ कर किसी गैर के,
एक पल में तुमने मुंह फेरा था । 

बर्बाद बहुत थे इश्क़ में पहले ही,
तुमने कुछ और नाम जोड़ दिए,
पत्थर से दिल ने तुम्हारे,
कितनों के उम्मीदों को तोड़ दिए ।

बिखरे टुकड़े दिल के अब भी,
वफ़ा नहीं किसी से करते हैं,
इश्क़ निभाना तो दूर बहुत,
इश्क़ जताने से भी डरते हैं ।

खैर,

क्या इश्क़ निभाना सीखा तुमने,
या अब भी वही इश्क़ दोहराते हो,
कर के वादा सुलझाने का,
उलझा कर चले आते हो ।।

Thursday, June 20, 2024

दिलरुबा

उसकी आंखों से गुजरी निगाहें मेरी,
पूरे संसार को मैंने उसमें पा लिया,
होठों से गुजरी निगाहें जब,
उसकी मुस्कान को दिल में बसा लिया ।

उसकी बिखरी जुल्फों में,
जब मैं खुद को उलझाने लगा,
दिल की धड़कनों के शोर को,
उससे भी छिपाने लगा ।

सुलझा कर लटों को अपने,
वो मुझे झुठलाने लगी,
बिखरे रिश्तों के किस्से को,
अपनी नम आंखों से बताने लगी ।

इश्क़ के गज़ब किस्से सुने आज तक,
पर ये किस्सा थोड़ा खास था,
बहुत बिछड़ों का बना जो आसरा,
दिलबर नहीं इस दिलरुबा के पास था ।

जंग इश्क़ में जो जायज़ हैं,
उसे हम हर रोज़ लड़ते रहेंगे,
दिलबर बन कर दिलरुबा के,
इश्क़ में आहिस्ता आहिस्ता पड़ते रहेंगे ।।

Sunday, June 9, 2024

उलझन

अनगिनत जज्बातों के संग,
देखो कैसे वो उलझी पड़ी रही,
होठों पर रख कर झूठी मुस्कान,
अंदर से बस रोती रही ।

ना पूछता कोई हाल उसका,
ना वो किसी को बता पाती,
इश्क़ के अनगिनत धब्बों को,
वो खूबसूरत निशा बताती ।

मिले मुसाफ़िर राहों में जो,
वो उसकी मंजिल भटकता रहें,
अपने मंजिल को बता कर दुनिया,
उसकी दुनिया को झुठलाते रहें।

हर जख्म के भरने से पहले,
कोई नया ज़ख्म दे जाता रहा,
कर के वादा इश्क़ का उससे,
बेवफाई निभाता रहा ।

सब कुछ लुटा कर आज वो,
देखो कैसे बेसुध खड़ी हैं,
फिर किसी मुसाफ़िर के खातिर,
गुमनाम रास्तों पर बढ़ रही हैं ।

सिलसिला तलाश का,
तब तक ख़त्म नहीं होगा,
उलझे जज्बातों में जब तक,
सुलझा "इश्क़" नहीं होगा ।।

Wednesday, March 20, 2024

रकीब की बद्दुआ

सिलसिला इश्क़ का तुमसे,
जिस रोज़ से शुरू हुआ,
मानो लग गई हो उसे,
किसी रकीब की बद्दुआ।

वो हर रोज़ कागज़ के पन्नों पर,
जब भी जज़्बात सजोने आता है,
बिखरे हुए शब्दों को देख कर,
नम आंखों से बस लिखता चला जाता है ।

ना मिलती इजाज़त ,
तुमसे खुल कर दिल लगाने की,
ना ही कभी शिद्दत से ,
तुमको कहानियां सुनाने की ।

फिर भी ये मुसाफ़िर,
हर रोज़ तुमसे ही दिल लगाता है,
महफ़िल से गैर मौजूदगी में भी,
सिर्फ तुम्हें ही मौजूद बताता है ।

इश्क़ के किस्सों में,
अब तुम्हारा जिक्र बढ़ने लगा हैं,
मुसाफ़िर भी शायद इस दफा,
ठहर कर इश्क़ में पड़ने लगा है ।

पर क्या तुम लौट कर,
कभी महफ़िल में आओगी,
या फिर हर बार की तरह,
बस रकीब से इश्क़ निभाओगी ।।

Saturday, February 24, 2024

फरेबी इश्क़

क्यों झूठे ख्वाबों से तुम,
इश्क़ की बुनियाद बिछाते हो,
आहिस्ता आहिस्ता मरहम बन कर,
झख्मों को नासूर बनाते हो ।

क्या इल्म नहीं तुमको,
उसकी बर्बादी के किस्सों का,
सब कुछ लुट चुका हो,
जिसके हर हिस्से का ।

बेखबर आज भी मनसूबों से,
वो तुमको अपना बता रही हैं,
ज़हर को समझ कर अमृत,
हर रोज़ पीएं जा रही है ।

बिखरने की आदत हो जिसे,
भला उसे जोड़ कर क्या मिलेगा,
बेहतर की ख्वाइश में,
आख़िर में बत्तर ही मिलेगा ।

नक़ाब उतार कर ख्वाबों का,
उसको सच से मिल आने दो,
जीते जीते मरी हैं कई दफा,
इस दफा मर कर जी जाने दो ।

मनसूबे जब मालूम नहीं ,
तो मंज़िल का पता कैसे बताओगे ,
बन कर आइना तुम भी,
सिर्फ़ दाग ही देख पाओगे ।

जज़्बात और हालात,
सब अभी काफ़ी विपरीत हैं,
हिस्से उसके तुम आज,
कल किसी और की रीत है ।

अकेलापन देखो अब उसका,
उसे कितना सता रहा है,
हर एक अजनबी में उसको,
अपना आशिक़ नज़र आ रहा है ।।

Friday, January 5, 2024

तुम और समंदर


अजनबी बन कर मिला था वो,
और तुमने उसे अपना बना लिया,
प्यास बुझाने को उसकी,
तुमने कुएं को समंदर बना दिया ।

अधूरा रहा सब कुछ,
समंदर के किनारे सा,
छोड़ गया वो भी तुम्हें,
किसी मछुआरे सा ।

हर बार तुम रेत बन कर,
क्यों खुद की तस्वीर बनाती हों,
जान कर भी फितरत लहरों की,
क्यों लहरों से गुजरने को आती हो।

मिटा कर वजूद कई दफा,
लहरों ने तुम्हें सताया हैं,
शायद ही आज तक,
कोई तुम्हें बचाने आया हैं।

किनारे पर पड़े रेत सा,
तुम खुद को क्यों मिटा रही हो,
बन कर शौख किसी और का,
क्यों इश्क़ जता रही हो ।

खोया है तुमने बहुत कुछ,
समुंदर के रेत की तरह,
पर अब और नहीं खोना हैं,
गैरमौजूदगी से तुम्हारे .. समंदर को रोना है ।

वैसे ,

समंदर से इश्क़ तुम्हें,
और भी गहरा होने लगेगा,
जिस रोज़ बाहों में भर कर,
वो तुम्हें किनारे पे छूएगा।

क्योंकि तब अंदाज इश्क़ का,
बेहद ही खास होगा,
उस पल समंदर अंदर और बाहर,
दोनों ही तेरे साथ होगा ।

छोड़ कर तन्हां नहीं,
सीपियों को साथ लायेगा,
हर दफा जब भी ,
तुझसे वो गुजर कर जाएगा ।।

सर्द हवाएं

सर्द हवाओं के झोका में,
ये कैसी गर्माहट है,
फिज़ा के बदले अंदाज़ से,
देखो कितनी राहत हैं।

चाय की हर चुस्की में,
लबों से जज़्बात पिघलने लगें,
इश्क़ में आज अरसों बाद,
चाय सा वो जलने लगें ।

गुजरने को जब वक्त गुजारा,
मानो दिल उस पर हार गए,
पिघलते जज्बातों के बाद,
भूल वो अपना ही संसार गए।

वो निहारता ही रहा राह,
उसके आने के इंतजार में,
पड़ा रहा जिंदा लाश सा,
बर्फीले पहाड़ में ।

गुजर कर सर्द हवाओं से,
जब वो कहीं और घर बसाने लगें,
मौजूद फिज़ा में खुशबू उसकी,
और भी उलझाने लगें।

आहिस्ता आहिस्ता तन ,
और मन भी सर्द पड़ने लगें,
छोड़ कर जिस्म अपना,
वो किसी और की जाना बनने लगें।

लेकिन 

इश्क़ के बर्फीले तूफान में,
शायद हम जैसे बहुत ही ख़ास होंगे,
हर रोज़ चाय की चुस्कियों के संग,
जो तूफान के बाद भी साथ होंगे ।

बर्फीले मौसम से इश्क़,
तुमने मुझे सिखा दिया,
सर्द पड़े इस दिल में,
जबसे अपना घर बसा लिया ।।

Wednesday, January 3, 2024

तेरी झलक

गुजरते लम्हों के कई किस्से,
जब उससे गुजर रहे थे,
खामोश लबों से कम,
आंखो से वो सब कह रहे थे।

थम गया था पल उसका,
चंद लम्हों की ख्वाइश में,
अल्फाज़ की बारिश,
और खुशियों की आजमाइश में।

दर्द जो दिल में था,
अब आखों पर आने लगा,
आहिस्ता आहिस्ता झूठी मुस्कान,
पलकों पर छिपाने लगा ।

तूफान से उस रोज़ ,
कई अरसे के बाद गुजरा था,
शिद्दत से जब वो अजनबी,
किसी मुसाफ़िर से मिल रहा था।

दर्द में बहुत रह लिया दिल उसका,
अब शिद्दत से मुस्कुराने लगा,
बन कर अजनबी ही सही,
उन लम्हों में वो खो जाने लगा।

उस रात के किस्से,
जो उसके हिस्से होने लगे,
अजनबी के संग उन लम्हों को,
वो खुल कर वो जीने लगे ।

सुनो,

कह दो सब कुछ निगाहों से,
जो दिल में छिपा कर रखा है,
झूठी मुस्कान से चेहरे पर,
मुखौटा जो लगा रखा है ।

बन कर अजनबी "मुसाफ़िर" का,
चंद लम्हें जी आओ,
एक और दफा शिद्दत से,
खुल कर मुस्कराओ।

क्योंकि जचता है कोई नूर तुम पर ,
तो वो तुम्हारी मुस्कान हैं,
आंखो का काजल और .. 


कुछ नहीं.. बस इतना सा पैगाम है !

Saturday, December 30, 2023

वफा से बेवफाई

मुझसे इश्क़ की कवायद कर के,
तुम किससे इश्क़ निभाने लगे,
हर बढ़ते कदम को मेरे,
तुम अजनबी बन कर मिटाने लगे । 

मायूस दिल को मेरे,
जब उलझनों ने घेर लिया,
तुमने भी बन कर गैर कोई,
मुझसे मुंह फेर लिया ।

क्या वादे और क्या कसमें,
तुम हर रोज़ खाते रहे,
कर के वादा वफ़ा का मुझसे,
बेवफाई तुम निभाते रहे ।

क्यों ठहर कर मुझ पर ही,
मुझसे इश्क़ निभाया नहीं,
क्यों खुद जैसा मुझको भी,
इश्क़ में फरेबी बनाया नहीं ।

हर सुबह को शाम कह कर,
तुम सूरज को चांद बतलाते रहे,
वफा के बदले बेवफाई देकर,
मुझसे इश्क़ जताते रहे ।

तोड़ कर टुकड़ों में दिल मेरा,
तुमने और कितनो को बर्बाद किया,
मुझ जैसे इश्क़ का वादा,
और कितनो के साथ किया ?!

सुनो..

इश्क़ में बर्बाद होना छोड़ने पर,
तुम किसे बर्बाद कर पाओगे,
उस रोज़ इश्क़ की तलाश में,
खुद ही तड़पते रह जाओगे ।।

Monday, October 30, 2023

पहली नजर

चांद से मिल कर सोया ही था,
ख्वाबों में अब तक खोया ही था,
की एक तस्वीर से जा टकराया,
पहली दफा जब वो मेरे सामने आया ।

आंखों में जिसके सवाल कई,
होठों पे उलझन भरी मुस्कान थी,
गालों के डिंपल में छिपी खूबसूरती,
और मायूस दिल से दुनिया अनजान थी।

देख कर जिसको निगाहें मेरी,
शब्दो को उलझाने लगें,
एक और बार किसी अजनबी को,
उसके किस्से हम सुनाने लगें ।

इंतज़ार किस्सों के पूरे होने का,
अब थोड़ा बढ़ने लगा,
जब छोड़ कर मैं उसे,
अपनी मंजिल को ओर बढ़ने लगा ।

एक और दफा वो जाकर,
पहाड़ों पर मुझसे से टकरा गया,
अरसों बाद लगा कोई निगाहों से,
उतर कर मेरा दिल धड़का गया ।

सुकून की तलाश में हम दोनों,
अब आज़ाद हो कर घूम रहे थे,
एक और दफा शिद्दत से,
इन लम्हें को संग जी रहे थे।

अपने टूटे दिल के दर्द को,
किस्सों से तुमने मिटाया हैं,
बहुत सा ज़ख्म आज भी,
तुमने दुनिया छिपाया हैं ।

मुस्कुराहट का श्रृंगार तुम पर,
पहाड़ों के सुकून सा खिलता है,
बड़ी मुश्किल से ऐसा श्रृंगार,
किसी "कोहिनूर" को मिलता है ।

Thursday, October 12, 2023

दो ज़िंदगी और एक लाश

एक जिंदगी का लूट चुका सब,
एक जिंदगी आज़ाद हो गई,
दोनों की लाश से आखिर,
आखिरी मुलाकात हो गई ।

एक ने रोका बहुत दूर जाने से,
एक ने दूर किया जमाने से,
एक के मांग में सिंदूर भरा,
दूसरे के जीवन में था रंग चढ़ा ।

अब तक होने वाली आबाद ,
देखो अब बर्बाद हो गई,
अब तक होने वाली बर्बाद ,
आखिरकार आबाद हो गई ।।

दो जिंदगी के बीच पड़ी लाश,
बस तमाशा देख रही हैं ,
फरेबी और नकाबपोश से,
वो आज पहली बार मिल रही है।

जिसको सब दिया वो पीछे खड़ा ,
जिसका हक लिया वो लिपटा पड़ा,
अब भला और क्या खोने को है,
लाश तो राख होने को है ।

लिपटे लाश पर खुशबू उसकी,
शमा को महका रही हैं,
मानो संग लाश के,
आत्मा उसकी जा रही है ।

आज दोनों में फर्क ,
देखो बेहद बड़ा है,
एक हाथ जोड़े.. ,
दूसरा सब लुटाए लाश पर पड़ा है।

लाश को सिर्फ एक मलाल हैं,
और उसका एक सवाल है ,
कौन जुल्मी ज्यादा बड़ा है,
वो जो हाथ जोड़े खड़ा है,
या जो कफ़न में लिपटा पड़ा है ?!

जवाब मिलने से पहले ,
लाश राख हो गई,
दो जिंदगी के किस्सों को,
वो साथ ले गई ।।

Thursday, September 7, 2023

उसके जाने के बाद

उसके जाने के बाद,
वो इश्क़ किससे निभायेगी,
मांग से मिट चुके सिंदूर को,
फिर कैसे लगायेगी ।

क्या यादों को मिटा उसके,
फिरसे लम्हें जीने लग जायेगी,
तोड़ कर सारे कसमें वादे ,
क्या फिरसे वो इश्क़ निभायेगी ।

काँधे पर सिर रख कर जिसके,
क्या किस्से फिर सुनाएगी,
चाय के चुस्कियों की लत,
क्या उसे भी लगाएगी ।

क्या जुल्म खुद के दिल पर,
किसी के जाने के बाद जरूरी हैं,
इश्क़ में नहीं पड़ना किसी के,
शायद सात फेरों की मजबूरी है ।

पर क्या जिस्म से निकल ,
रूह ने इश्क़ निभाया है क्या,
मौत के बाद फुरसत से मिलने,
कभी वो आया है क्या ?

सुनो ..

आज़ाद कर के उन लम्हों को,
अब उसे उड़ जाने दो,
दो पल की इस जिंदगी को,
किसी और का हो जाने दो ।

क्योंकि मौत के आने से पहले,
इश्क़ को आ जाने दो,
रकीब एक और दफा,
इश्क़ को मोहब्बत में बन जाने दो ।

और हां 

क्या उस जैसा बदनसीब इश्क़,
किसी और को भी नसीब होगा,
जिसके जाने के बाद उसकी यादें,
उसकी मोहब्बत का रकीब होगा ।।

Monday, August 7, 2023

आज झूट जीत गया

सच का वादा कर के वो,
हर सच को झुठला गया,
वफ़ा के बदले हर दफा,
बेवफ़ाई निभाता गया ।

हर सितम को जिसके हम,
दुनिया से छिपाते रहें,
बहते आंसुओं की वजह,
हर दफा काजल को बताते रहें।

ख्वाबों की दुनिया छोड़,
जब सच से सामना होने लगा,
इश्क़ मेरा छोड़ कर दामन,
किसी और का होने लगा ।

ख़त्म कर के सिलसला इश्क़ का,
किसी और को वो बर्बाद करने निकल पड़ा,
छोड़ कर दामन जब आंचल का,
किसी के पल्लू में था लिपट पड़ा ।

सच घुटने टेके,
और झूठ सीना तानें देखो खड़ा है,
सच में सच से कहीं ज्यादा,
इश्क़ में झूठ लगता बड़ा है ।

एक और दफा ,
झूठ और सच के जंग में ,
देखो आज झूठ फिरसे जीत गया,
जिस पल इश्क़ "रूह" से छूट गया ।।