Saturday, October 5, 2013

प्रेरणा ..... नारी होने का गर्व


आज माँ के कमरे मे कोई आया था  ,
बेटी है कोख मे जान ,
उसने मुझे मिटाने का ,
फरमान सुनाया था .

उसी रात माँ ने ,
एक ऐसा कदम उठाया था ,
जिससे मेरा जन्म ,
साकार हो पाया था .

माँ उस रात घर का चौखट लांघ गयी ,
मै और माँ उस जालिम दुनिया से आज़ाद हुई ,
और इसी कदम के साथ ,
उस रात एक नए पहेल की शुरुआत हुई  .

मै अब इस दुनिया मे आ गई थी ,
माँ की उम्मीद जगमगा गई थी ,
बार बार मुझे निहार वो ,
ख़ुशी से सिने से लगा रही थी .

पहली दफा चलने को ,
माँ की उंगली थामी थी ,
खुद के कदमो पर चलना है ,
उस रोज़ ही मैंने ठानी थी .

मै लड़खड़ाते हुए , अब चलने लगी थी ,
कभी इधर कभी उधर गिर कर ,
खुद के कदमो पे ,
आगे बड़ने लगी थी .

मेरा स्कूल मे वो पहेला दिन था ,
जीवन मे पहली दफा ,
जो कुछ पल ,
माँ के बिन था .

जब कक्षा मे प्रथम आई थी मै ,
संग अपने सखियों को ,
जितने का जज्बा दे पायी थी मै .

एक बड़ा परिवर्तन तब आया था ,
जब भरे समाज मे ,
मुझे छेड़ रहे उस दरिंदे को ,
मैंने खुद ही सबक सिखाया था .

खड़े वह हजारो मे ,
मुझे कोई नहीं बचाने आया था ,
देख मेरे साहस को ,
वहा कड़ी महिलाओं मे ,
खुद की रक्षा करने का ,
जज्बा आया था .

आज मैंने देश के रक्षा मे ,
शस्त्र उठाया था ,
देख इस परिवर्तन को ,
समाज के सोच मे बड़ा बदलाव आया था .

आज जब बोर्डर पर मै ,
दुश्मनों से लड़ रही थी ,
ज़िन्दगी की जंग हार कर ,
देश को जीत की ओर कर रही थी .

तभी मेरे मन मे एक सवाल आया ,
क्यों हमे समाज मे ,
कमजोर समझा जाता है ,
क्यों हमारे साहस को कम आक़ा जाता है .

इस सोच को हमें बदलना है ,
संग औरो से कंधे मिला ,
उनके संग चलना है .

आज मेरी माँ ,
मेरे शहीद होने पर ,
आँसू नहीं बहा रही थी ,
गर्व से सबको मेरी पहेचान बता रही थी .

मेरी कुर्बानी ने ,
देश की महिलाओं मे ,
एक जज्बा ला दिया,
उनकी ताकत का ,
उन्हे एहसास दिला दिया .

आखिरकार मैंने ,
मैंने अपनी ताकत का परचम लहरा दिया ,
इस भ्रमित समाज के भ्रम को मिटा ,
एक नई सोच उदाहरण के तौर पर ,
समाज मे ला दिया .

मै कौन हु ,
आज आप को बताती हु ,
नकली सामाजिक मुखौटे को हटा कर ,
अपनी असली पहेचान बताती हु ,
मै "" नारी "" के नाम से ,
इस जग मे जानी जाती हु .


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2 comments:

scaquarius.com said...

Beautifully written 👏

Mamta Gantayat said...

Nice and touching too