Sunday, August 18, 2013

गुस्ताखी माफ़

तेरा यु भीड़ मे अलग से आना ,
आते ही पूरी लगन से व्यस्त हो जाना , 
आगे बड़ कर लोगो का हाथ बटाना ,
याद है अब भी मुझे .

तेरा इस कमरे उस कमरे मे जाना ,
फिर उस कमरे से इस कमरे मे आना ,
अपनी मौज़ूदगी हरपल दर्ज करना ,
याद है अब भी मुझे .

पहली दफा निगाहो ने ,
जब गौर से तुझे देखा ,
कलम उठ गयी थी खुदबखुद ,
दिल मे कुछ धर कर बैठा ,
याद है अब भी मुझे .

किसी तरह दिल को समझाया ,
मन को फिर से काम पर लगाया ,
पर निगाहो को तुझे देखने से ना रोक पाया ,
याद है अब भी मुझे .

जब पहली दफा कुछ कहने को ,
तुम मेरे पास आई ,
निगाहो ने मेरे दम तोड़ दिया ,
जुबा ने साथ छोड़ दिया ,
याद है अब भी मुझे .

जब तुम खुद के पलकों से ,
पलके मिला रही थी ,
नींद बहुत जोर से तुम्हे आ रही थी ,
तभी अचानक मैने तुम्हे बुलाया ,
ख्वाबो  की दुनिया से तुम्हे जगाया 
याद है अब भी मुझे .

मेरे कविताओ की भाषा हिंदी ,
जिसकी युवा पीड़ी मे है मंदी ,
फिर भी तुमने बड़ी मुश्किल से पड़ उन्हे ,
मुझे निराश नहीं कराया ,
मुस्कुराते हुए उन्हे " आल आर नाइस " बताया 
याद है अब भी मुझे .

उस वक़्त कुछ पल के लिए ,
जब हमारी निगाहे मिली थी ,
दिल मे मच गयी थी खलबली ,
याद है अब भी मुझे .

कविता किसने लिखी वाली बात पे ,
जब तुम जोर जोर से खिल खिलाई ,
होठो पर हाथ रख कर ,
मुस्कराहट अपनी छिपाई ,
याद है अब भी मुझे .

क्यों तुमसे मिल कर आज ,
कुछ अलग सा लगा ,
शायद हम पहली बार नहीं मिल रहे ,
ऐसा दिल ने कहा ,
याद है अब भी मुझे .

जब हम वहा से बाहर आये ,
संग दोनों ने  जाने को कदम बढाये ,
मैने कुछ पूछना ही चाहा ,
की तुम खुद बताने लगी ,
कौन हो तुम ,
ये बात कुछ हद तक समझ आने लगी ,
याद है अब भी मुझे .

बस तुम्हे हर बात के लिए ,
हर वक़्त साथ के लिए  ,
" शुक्रिया " कहना है ,
ना चाह कर भी हमे दुर रहना है ,
पर अलविदा कभी नहीं कहना है .

और हां , बस गम इस बात का है ,
तुम्हारा नाम क्या है ,
ये पूछ नहीं पाया ,
ये बात अभी कविता लिखते वक़्त याद आया ,
गुस्ताखी माफ़ !!!!! 


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