Tuesday, November 6, 2018

महल - ऐ - दिल

दिल पे पत्थर रख कर ,
हम एक महल बना रहे थे ,
हीरों से सज़ा कर ,
उसे दुल्हन बना रहे थे ।

कुछ दूर नो निकले थे अभी ,
हम पीछे आ रहे थे ,
धड़कनो को महल की ख़ातिर ,
आहिस्ता से धड़का रहे थे ।

तभी शाम होने को आ गई ,
अँधेरा संग जो ला गईं ,
लगा अब वो जगमगा उठेगी ,
रोशन इस पल को ख़ुद करेगी ।

तभी ज़ोर का एक झटका आया ,
दिल से टूट कंकड़ , जा महल से टकराया ,
हीरा नहीं शीशा था वो ,
तब जा कर ये दिल समझ पाया ।

आज भी जब कही अंधेरे में ,
कुछ भी चमकता पाता हु ,
टूटना मत ऐ दिल ,
बस यही समझाता हु ..।।

फिर हर बार की तरह ,
दिल पर पत्थर रख महल बनता हु ..!!

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