Saturday, May 11, 2019

माँ

आँखे खुली जो पहली दफ़ा ,
नज़र मुझे तू आई ,
बस मेरी पहली चीख़ पर ,
थी तू मुस्कुराई ।।

सिने से लगा कर मुझको ,
ख़ुद में छिपा लेती ,
होता नहीं इक पल भी दूर ,
मुझे आदत बना लेती ।

हर सुबह सूरज से पहले वो आ जाती ,
उम्मीद और हौसला दे मुझे जगाती ,
फिर भी मैं जा कर सो जाता ,
देख जिसे माँ को ग़ुस्सा आता ।।

चहरे पे ग़ुस्सा और हाथो में छड़ी ,
होती थी अक्सर माँ खड़ी ,
देख जिसे मैं झट से जग जाता ,
तब जा कर माँ को चैन आता ।

शाम को जब भी लौट कर मैं ,
घर को वापिस आता ,
इंतज़ार में बैठी माँ की ख़ुशी ,
देख मैं भी खिलखिलाता ।

बस अब यही उसकी ज़िंदगी बन गई ,
भूल हर दर्द मुझ में खो गई ,
एक रोज़ सूरज पहले आ गया ,
देख जिसे मैं घबरा गया ।

ख़ामोश थी जिसकी आँखे ,
होंठों पर ना थी कोई हँसी ,
और ना ही थी हाथों में छड़ी ।।


शायद माँ अब दूर ... बहुत दूर जा चुकी थी ।।

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