Monday, June 24, 2019

सिलसिला

 पहली नज़र ..पहली मुलाक़ात ,
होने लगी थी जबसे बात ,
ना वो कुछ कहते , ना हम सुनाते ,
ख़ामोश रह कर आँखों से सब कह जाते ।

हुआ शुरू जो था सिलसिला ये ,
अब हर रोज़ चलने लगा था ,
कल तक निगाहो को मिलाने वालों का ,
अब दिल भी मिलने लगा था ।

बड़ी ठंडक और सुकून देते थे पल वो ,
जब कभी वो मेरे क़रीब आ जाते ,
समेटे पहाड़ों से ऊँचे अल्फ़ाज़ ,
ना जाने कहा छिप जाते ।

हर रोज़ जब भी देखता उसे मुस्कुराते ,
गालों पे बन कोहिनूर डिम्पल बन आते ,
देख अदा जिसकी ख़ूबसूरत ,
बस आँखों से ही हम इश्क़ में डूब जाते ।

जो सिलसिला आँखों से शुरू हुआ ,
ना जाने कहाँ ख़त्म होगा ,
नहीं फ़ुर्सत उन्हें सुनने की मुझे ,
इस सिलसिला का क्या हश्र होगा ।


अब भी होती है बातें निगाहों से अक्सर ,
पर अब हम नज़रें उनसे चुराते ,
कमबख़्त कौन रोके इस चालू दिल को ,
एक दफ़ा फिर आइये सिलसिला चलाते ..

आइये एक दफ़ा फिर नज़रें मिलाते ,
आइये एक दफ़ा फिर उनमें खो जाते ।।

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