Wednesday, June 26, 2019

तितली

हल्की हल्की बारिश की बूँद ,
और होता सवेरा ,
बादलों से घिरा असमां ,
ढूँढ रही थी वो अपना बसेरा ।

रंग बिरंगे रंगो से सजी ,
सूरज की किरणो से चमक रही थी ,
पत्तों से छलक कर बूँद बारिश की ,
उस पर जब पड़ रही थी ।

मदमस्त वो कभी इस डाली ,
कभी उस पेड़ पर छिप जा रही थी ,
कभी उड़ खुले आसमा मे ,
शमा को ख़ूबसूरत बना रही थी ।

सर्द होते मौसम में ,
वो एक गर्म सा एहसास थी ,
अंधेरे में जगमगाता दीया ,
ऐसा वो विश्वास थी ।

एक ज़ोर का तूफ़ान आया ,
देख जिसे मैं घबराया ,
पर वो ना रुकने को तैयार थी ,
उड़ने को फिर से बेक़रार थी ।

मन भी तितली सा लगता है ,
लिये रंग हज़ारों चमकता है ,
कभी इस डाल कभी उस पेड़ ,
बस उड़ता चला जाता है ।

क्यू ना दिल को भी ,
तितली बनाये ,
रंगबिरंगे उम्मीदों के संग ,
पंख लगा कर जो उड़ जाये ।।

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