Friday, September 13, 2019

किन्नर

आज की सुबह कुछ ख़ास थी ,
माँ के चेहरे पर ख़ुशी बेशुमार थी ,
पापा को बेटी प्यारी ,
वंश को बेटे की दरकार थी ।

माँ के जिस्म से अलग होने को ,
वक़्त मेरे जितने पास आ रहा था ,
ना जाने क्यू माँ से ,
ख़ुद को मैं दूर पा रहा था ।

ऐसा पहली दफ़ा होने को आया था ,
पैदा होने पर रोता सुन ,
कोई नहीं मुस्कुराया था ,
मेरी पहचान से मातम छाया था ।

माँग रहे थे दुआ सभी जब,
क्यू दुआ क़बूल नहीं हो पाई ,
ना आया बेटा , ना आई बेटी ,
किन्नर थी ... माँ के घर आई ।

क्यूँ नहीं कोख में मुझे मिटा दिया ,
क्यूँ मुझे ऐसा बना दिया ,
कोख से जन्मी थी जिस माँ के ,
उसने भी ठुकरा दिया ।

क्यूँ नहीं बन पायी पापा की लाड़ली ,
ना ही बन पाया घर का लाल ,
पैदा होते ही छोड़ दिया ,
क्यूँ मुझे मेरे हाल ।

माना की मैं अलग हु जिस्म से ,
पर दिल मेरा भी धड़कता हैं ,
माँ की ममता और परिवार की ख़ातिर ,
हर वक़्त तड़पता है ।

यू तो पहचान मुझे मेरी मिल गई ,
पर आज भी अपनो से अनजान रह गई ,
ना वो मुझे अपनाते , ना अपना बनाते ,
हाय हाय “ किन्नर “ ... कह ,
अक्सर आगे बढ़ जाते ।

वक़्त वो भी ज़रूर आयेगा ,
जा मेरी पहचान जान कर ,
दुनिया मुझे अपनायेगी ,
उस रोज़ माँ भी सीने से लगाएगी ।।

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