Saturday, August 24, 2019

शिकायत

मेरे आने से तेरे जाने तक ,
तेरे आने से मेरे जाने तक ,
कुछ जो हर पल साथ था ,
वो एक उलझा एहसास था ।

ना बदला वक़्त ना बदली ख़ुशी ,
आज भी रहती है अक्सर बेरुख़ी ,
बस यूँही हम मुस्कुराते जाते ,
एक तरफ़ा मोहब्बत उनसे कर आते ।

कभी वो मुस्कुराती ,
कभी बेवजह रूठ जाती ,
होश में तो मालूम नहीं ,
अक्सर नींद में ख़्वाब बन आती  ।

रंग होंठों का लाल ,
पलकों पर काजल कमाल ,
गाल पर वो छोटा तिल ,
बसता था जहाँ मेरा दिल ।

बस चंद लम्हों में अरमा,
टूटे काँच सा बिखर गया ,
जिस पल वो शिकायत मेरी ,
ख़ुद की मौजूदगी से कर गया ।


नहीं मालूम इश्क़ सच्चा ,
या झूठा होता हैं ,
ये “शिकायतों” वाला दौर ,
शुरू में कहाँ होता है ।

ख़ैर अच्छा हैं ,
“शिकायत “ फ़रिश्ता बन कर आता हैं ,
उलझे रिश्तों में क़ैद पंछी को ,
पिंजड़े से आज़ाद कर जाता हैं ।

शुक्र हैं शिकायत से कोई शिकायत नहीं ,
वरना होती मोहब्बत शायद दुबारा कभी ।।


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