Sunday, September 20, 2020

बेहतर

बेहतर ही होता जो ना आते तुम ,

मुस्कुरा कर दिल ना चुराते तुम ,

ना ही होती कोई उम्मीद ख़ुद से ,

ना ही उसे फिर से तोड़ पाते तुम ।


पहली ही मुलाक़ात आख़िरी क्यूँ ना हुई ,

क्यूँ वक़्त ने फिरसे था मिलाया ,

दूर था हो मीलों मुझसे अब तक ,

फिर था ज़िंदगी के क़रीब आया । 


ना ही आँखों से अब होती बातें ,

ना ही हम उन्हें अब पढ़ पाते ,

ना ही बेताबी है मोहब्बत में ,

ना ही शिद्दत से उन्हें वो निभाते । 


मिल कर भी मीलों दूर खड़े है ,

जान कर भी अजनबी बने है ,

बेहतर ही होता जो ना मिलते ,

शायद यूँ ना हम कहते ।


ख़ैर इस ज़िंदगी का क्या अब ,

पर अगली ज़िंदगी बेहतर बनायेंगे ,

होगा शायद बेहतर ,

इस दफ़ा जो तुझे भूल जायेंगे ।

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