ये जो इश्क़ है ना तुमसे ,
हद में नहीं हो पाता ,
यूँ बैठी हो जाकर दूर कही ,
कोई पता भी नहीं बताता ।
तेरी हँसी की हो गूँज ,
या निगाहें क़ातिलाना ,
कमबख़्त इश्क़ क्यूँ है ,
किसी हद से अनजाना ।
माना की मिलना हुआ नहीं ,
मिल कर भी कई बार ,
हद में थे नहीं कभी तुम ,
कभी हमारा प्यार ।
धड़कन ने भी कहाँ दिल से ,
हद में धड़काया करो ,
बेवजह ही नहीं अक्सर,
साथ छोड़ जाया करो ।
कैसी है जीद तेरी ,
और कैसा मेरा पागलपन ,
हद में रह कर करो मोहब्बत ,
ए जानेमन ।।
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