Wednesday, September 2, 2020

हद

ये जो इश्क़ है ना तुमसे ,

हद में नहीं हो पाता ,

यूँ बैठी हो जाकर दूर कही ,

कोई पता भी नहीं बताता ।


तेरी हँसी की हो गूँज ,

या निगाहें क़ातिलाना ,

कमबख़्त इश्क़ क्यूँ है ,

किसी हद से अनजाना । 


माना की मिलना हुआ नहीं ,

मिल कर भी कई बार ,

हद में थे नहीं कभी तुम ,

कभी हमारा प्यार ।


धड़कन ने भी कहाँ दिल से ,

हद में धड़काया करो ,

बेवजह ही नहीं अक्सर,

साथ छोड़ जाया करो ।


कैसी है जीद तेरी ,

और कैसा मेरा पागलपन ,

हद में रह कर करो मोहब्बत ,

ए जानेमन ।।

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