अब दिल नहीं करता,
किसी से दिल लगाने को ,
एक और दफा दिल ,
किसी और का तोड़ जाने को l
ना ही फिज़ाओं में है खुशबू तेरी ,
ना ही हलचल पत्तियों पर ,
ना खिले है फूल कहीं ,
ना ही पैरों के निशा बिखरे पत्तों पर l
मौसम सी होती है मोहब्बत ,
कौन ये सच मानता है ,
धूप और छाव के मायने ,
सिर्फ वक्त पहचानता हैं l
कभी लगता है डर धूप से ,
कभी छाव ढूंढते है ,
बेवजह ही नहीं लगाते दिल ,
अजनबी में भी पहचान देखते है l
फरेबी कहे दिल को ,
या तुमको बेवफा ,
इश्क़ में हार बैठे हम बाज़ी ,
या ज़िन्दगी एक दफा ?
अब नहीं करता दिल ,
किसी से दिल लगाने को ,
एक और दफा किसी का ,
दिल तोड़ जाने को ll
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