Saturday, December 19, 2020

छुईमुई दिल

माना की मंजूर नहीं मोहब्बत ,
शायद इस दिल को अब मेरे ,
बन बैठा ज़ख्मी घायल शेर ,
जो आज बेवजह ।

कौन कहता है की हर ज़ख्म ,
वक्त के साथ भर जाता है ,
कुछ ज़ख्म वक्त के साथ ,
और गहरा पड़ जाता है ।

ना मालूम पता खंजर का ,
ना मालूम पता मंजर का ,
बस ज़ख्मी हो आया है ,
बेवजह ही मुर्झाया है ।

छुई मुई सा होता है दिल ,
आज हकीम ने बताया ,
टूटे और ज़ख्मी दिल को ,
भला कहां था कभी ये समझ आया ।

गर हो सके तो दिल को मेरे ,
मुझ तक ही रहने देना ,
जैसा भी हो एहसास ,
मेरे धड़कनों को सहने देना ।

दिल बीमार है यकीनन आज ,
कल फिर ठीक हो जायेगा ,
आज नहीं लगने को किसी से तैयार ,
शायद कल कोई उसमे बस जायेगा ।