Sunday, June 13, 2021

चिड़िया


कैद किसी पिंजड़े में ,
एक चिड़िया रहती थी ,
कोयल सी थी बोली जिसकी ,
पर कुछ ना कहती थी ।

उस कैद में भी खुद को ,
वो आज़ाद बताती थी ,
मुस्कराने की गर ना भी हो वजह ,
फिर भी मुस्कुराती थी ।

थे बहुत चाहने वाले उसके ,
पर कहां कोई रिश्ता निभा पाता था ,
कर के वादा खुले आसमां का ,
पिजड़े में कैद कर जाता था ।

उड़ने की ख्वाइश लिए ,
हर दफा वो फंख फैलती थी ,
बमुश्किल ही ,
कुछ दूर उड़ पाती थी ।

एक रोज़ हुआ कुछ ऐसा ,
पिंजड़े से वो आज़ाद हुई ,
ना कोई था अपना .. ना पराया ,
हर परिंदे से मुलाकात हुई ।

अब देखने को उसे ,
दुनिया को सर उठाना पड़ता है ,
सुनने को बोली जिसकी ,
पिंजड़े में जाना पड़ता है ।

ये आसमां ये धरती और ये नदियां ,
वो सबको अपना घर बताती है ,
पिंजड़े में शायद वो नहीं ..हम हैं ,
हर दफा खोल पंख जब उड़ जाती है ।

अब भी .. 

कैद कहीं कोई चिड़िया  ,
किसी पिंचड़े में दुनिया बसा रही होगी ,
हो सके तो खोल दो पिंचड़ा ,
शायद वो भी उड़ना चाह रही होगी ।।

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