Wednesday, August 14, 2013

जननी


सुनो लाडली ,
तुम्हे कुछ बताना है ,
तुम्हे ना अपनाने की वजह समझाना है .

मै मानती हु ,
मैने तुम्हे मिटाया ,
पर क्या तुम जानती हो ,
क्यों मैने ये कदम उठाया .

मै भी कभी लाडली थी अपने माँ की ,
उसको भी था मुझपर नाज़ ,
जन्म होते ही मेरा , घर मे ,
कई दिनों तक बंद था सब काम काज़ .

मै तो नन्ही परी थी तब ,
पर पता लगा नहीं बचपन बिता कब ,
अब मै बड़ी हो रही थी ,
ये जान मेरी माँ रो रही थी .

आज दीपावली का त्यौहार था ,
घर मे आ रहा ढेरो उपहार था ,
दिये जला मै भी ख़ुशी मना रही थी ,,
घर के बाहर की दुनिया ,
शायद आज देख पाऊ
ये सोच कर बार बार दरवाजे पर जा रही थी .

मै आज पहली बार घर से बाहर आई ,
देख मुझे उस दरिन्दे ने ,
निगाहे गोल गोल घुमाई ,
ये देख घबरा कर मै ,
जोर जोर से माँ माँ चिल्लाई .

पापा ने जान कर ये बात ,
मुझे खूब खरी खोटी सुनाई ,
आज मुझे माँ क्यों रोती थी अक्सर ,
कुछ हद तक बात समझ आई .

अब दुखो ने मुझे पूरी तरह घेर लिया था ,
ज़िन्दगी ने माँ से मुह फेर लिया था ,
अब मै और लाचार , कमजोर हो गई ,
एक अलग सी दुनिया मे खो गई .

आज घर पर मेरा रिश्ता आया था ,
एक नया एहसास फिर मन मे गुन गुनाया था ,
हो कर घर से विदा मैने ,
ससुराल की ओर कदम बढाया था .

इस जीवन को मैने सारे दुःख भूल ,
अभी नए सोच से शुरू ही किया था ,
आचानक एक रोज़ दहेज़ की खातिर ,
ससुराल वालो ने मुझे घर से खदेड़ दिया था .

किसी तरह से पापा ने पैसा जुटाया ,
लक्ष्मी के संग अपनी लक्ष्मी को विदा कराया ,
माँ क्यों रोती थी अक्सर ,
आज ये बात समझ आया .

आज फिर कोई मेरे कमरे मे आया था ,
जोर जोर से मुझपर चिल्लाया था ,
बेटी है कोख में मेरे ,
ये जान कर उसने मुझे ,
तुम्हे मारने के लिए उकसाया था .

लाडली , इन्ही कुछ वजहों से ,
मैने आंसू घोट , खून बहाया था ,
माँ की चाहत छोड़ ,
तुम्हे मिटाया था .

और सुनो लाडली ,

मै नहीं चाहती थी ,
तुम इस दुनिया मे आओ ,
मुझ जैसे त्रस्त हो कर दुनिया से ,
तुम भी किसी लाडली को मिटाओ .


आज हमारे देश मे हजारो की संख्या मे ऐसी महिलाये है जो आज स्वतंत्रता के 67 वर्षो के  बाद भी स्वतंत्र नहीं है , आखिर क्यों ?????

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