Friday, September 5, 2014

गुरु .. मेरे मार्ग दर्शक

माँ को छोड़,
जब पहली दफा स्कूल को आया था,
परायो के बीच,
निस्वार्थ भाव से आप ने ही अपनाया था.

मैं निकल पड़ा था अनजान सफर पर,
ना रास्तो का ज्ञान, ना मंजिल का था पता,
तब आप ने राह दिखाई थी ,
लगने लगे थे रास्ते आसान,
और तब पहली दफा मैंने,
मंजिल को खुद से बेहद करीब पाया था. 

यू तो पापा ने खरीद दी थी कलम,
और माँ ने उसे चलाना सिखाया था,
पर जिस रोज़ जब आप ने,
उन नन्हे हाथो को पकड़ कर,
'' लिखा था,
उस रोज़ ही पहली दफा मै कुछ,
खुद लिख पाया था.


माँ ने भेजा था टिफ़िन बना कर,
पर तब खुद खाना नहीं आया था,
एक बार फिर आप ने मेरे हाथो को,
अपने हाथो का सहारा दे कर,
खाना, खाना सिखलाया था.

जब एक रोज़ चलते चलते,
कदम मेरे लड़खड़ाये थे,
उस रोज़ भी आप के हाथो के सहारे हम,
फिर खड़े हो पाये थे.

उस रोज़ जब गलती कर के,
उसे छिपा रहा था,
तब पहली दफा,
उन हाथो ने गालो को कुछ यू छुआ,
की आंसू, आंखो से गिरने को विवश हुआ.

गिरते आंसुओ की धार देख,
आप जोर से चिलाये,
जिसे देख मैं घबरा गया,
ऐसा लग रहा हो,
जैसे आप नहीं कोई और,
आप के रूप में हो आ गया.

यू तो माँ भी अक्सर गुस्साती थी,
पर रोता देख मुझे
वो भी रोने लग जाती थी,
पर आप का गुस्सा देख,
उन लम्हों मे माँ की बहुत याद आती थी.

मैं समझता नहीं, और आप समझाते,
अक्सर अनजान रास्ते पे चलने को अकेला छोड़ जाते,
पर याद है उन रास्तो की यादे,
जहां भटकते ही रास्ता,
मार्दर्शन के लिए मेरे पीछे आ जाते.

तब तो कभी अच्छा, कभी बुरा लग जाता,
आप मे अपनों से जादे गैर नजर आता,
सोचता क्यों आप वक़्त के साथ बदल गए,
मेरी बातो को क्यों नहीं समझ रहे.


पर आज जब मैं उन रास्तो से,
मंजिल की ओर जा रहा हूं,
आप के ही पदचिन्हो को,
उन राहो पर पा रहा हूं.

एक बात बतानी है आज आप को ..........

आज समझ आया,
जिन रास्तो को अनजान समझ मैं,
जाने से घबराता था,
क्यों भटक जाने पर,
खुद के आस पास आप को पता था.

उन राहो के दोनों ओर,
ढेरोंकंकड़ पत्थर पड़े देख मैं घबरा गया,
उन पत्थरो पर देख,
आप के हाथो के निशा और लहू,
सब समझ आ गया.

जिन राहो पर मंजिल थी मेरी,
उन रास्ते को आपने खुद चलकर,
उन्हे आसान बनाया,
और तो और कभी इसका एहसास भी नहीं था हमको हो पाया.


माँ के तो फटकार मे भी प्यार ढूंढ लेता था,
पर आप को क्यों नहीं समझ पाया,
पूजते तो हम बिन देखे ईश्वर को भी है,
फिर आप को क्यों पूज्य नहीं था हमने बनाया.

आप की महानता अपरम्पार है,
माँ जैसा आपका सच्चा स्नेह और प्यार है,
इंसान के रूप मे ... हे गुरुदेव,
आप ही ईश्वर के सच्चे अवतार है ...

गुरुजनों के चरणों में कोटि- कोटि प्रणाम ...


Happy Teachers’ day J

जिस तरीके से एक कुहार जब माटी का घड़ा बनता है तब उसे बाहर से थपथपाते है और अंदर से सहलाता है , ठीक उसी तरह हमारे गुरुजन भी हमारे साथ उसी तरह का व्यवहार करते है लेकिन जैसे इंसान को कहार का थपथपाना दीखता है , सहलाना नहीं ठीक वैसे ही हमे भी अपने गुरु की मार फटकार तो दिखाई दे जाती है लेकिन उसमे छिपा प्यार नहीं ... मेरी ये कविता संपूर्ण रूप से मेरे गुरुजनो को समर्पित है .. वो तमाम गलतियों के लिए हाथ जोड़ कर छमा चाहता हु और जीवन मे जो भी उपलब्धिया हांसिल की है उनके लिए आप का शुक्रियादा करना चाहता हु ....



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1 comment:

Chanchal said...

Teacher's sikhte bhi h pr humne ache nhi lagte or sach toh ye hai humne unki ksdar tb hoti h jb mushkil padhne pr unki kahi baate yadd ati hai..
Sir ap ne poem bhut achi likhi hai..