तेरी आँखों में देखकर उस झलक को ,
लगा जैसे कोई हुस्ने दीदार था ,
देखा था पहली दफा आइने में तुम्हे ,
उस रोज़ ही आइने से कर बैठा प्यार था.
कुछ करीब अब जब हम आ रहे थे ,
निगाहों से निगाहें मिला रहे थे ,
ना तुम कुछ बोली , ना मैं कुछ कह पाया ,
मानो जैसे निगाहों मे वो नहीं था भाया.
यु तो मैं दूर था तुझसे ,
पर ना जाने तुम कैसे करीब ले आई ,
दिल नहीं देता था इजाज़त ,
फिर कैसे मेरी निगाहों मे ,
तूमने अपनी तस्वीर बनाई .
मेरे हर सुर को ,
अब ताल मिलने लगा था ,
मानों लग रहा हो ऐसे ,
जैसे कोई अपना बन रहा था .
तेरी मासूमियत , तेरी हरअदा ,
लगने लगी थी मुझको सबसे जुदा ,
अब मैं तेरे और करीब आने लगा था ,
दिल की बातो को संगीत बना ,
तुझको सुनाने लगा था .
पर तुम कुछ कहती ,
या मैं सुन पाता ,
उससे पहले तुम चली गई ,
और फिर क्या ,
सूने आइने को ,
मेरी नम आँखे देखती रह गई .
बहते आंसुओ के संग ,
तेरी तस्वीर को भी बहा दिया ,
फिर भी सुकून ना मिला ,
हाल दिल का अब ,
बद से बत्तर था हो चला .
उस रोज़ जब उठा तो ,
लगा सपने मे खोया हु मैं ,
देख कर आइने मे उन निगाहो को ,
एक बार फिर दिल दे बैठा था मैं .
तुम थी कहां ये पता नहीं ,
पर दिल को अब भाने लगी थी ,
दूर थी बहुत मुझसे ,
पर करीब आने लगी थी .
एक बार फिर ,
हम साथ खड़े थे ,
और हमेशा की तरह ,
आइने से निगाहो को देख रहे थे .
तभी आइना मिलते निगाहो को देखमुस्काया ,
और कहने लगा ,
तेरे आने से मुझको ,
सुकून मिला , सुकून मिला .... शशांक विक्रम सिंह 'श्रीनेत'
Copyright © 2014 shashankvsingh.blogspot.in™, All Rights Reserved
लगा जैसे कोई हुस्ने दीदार था ,
देखा था पहली दफा आइने में तुम्हे ,
उस रोज़ ही आइने से कर बैठा प्यार था.
कुछ करीब अब जब हम आ रहे थे ,
निगाहों से निगाहें मिला रहे थे ,
ना तुम कुछ बोली , ना मैं कुछ कह पाया ,
मानो जैसे निगाहों मे वो नहीं था भाया.
यु तो मैं दूर था तुझसे ,
पर ना जाने तुम कैसे करीब ले आई ,
दिल नहीं देता था इजाज़त ,
फिर कैसे मेरी निगाहों मे ,
तूमने अपनी तस्वीर बनाई .
मेरे हर सुर को ,
अब ताल मिलने लगा था ,
मानों लग रहा हो ऐसे ,
जैसे कोई अपना बन रहा था .
तेरी मासूमियत , तेरी हरअदा ,
लगने लगी थी मुझको सबसे जुदा ,
अब मैं तेरे और करीब आने लगा था ,
दिल की बातो को संगीत बना ,
तुझको सुनाने लगा था .
पर तुम कुछ कहती ,
या मैं सुन पाता ,
उससे पहले तुम चली गई ,
और फिर क्या ,
सूने आइने को ,
मेरी नम आँखे देखती रह गई .
बहते आंसुओ के संग ,
तेरी तस्वीर को भी बहा दिया ,
फिर भी सुकून ना मिला ,
हाल दिल का अब ,
बद से बत्तर था हो चला .
उस रोज़ जब उठा तो ,
लगा सपने मे खोया हु मैं ,
देख कर आइने मे उन निगाहो को ,
एक बार फिर दिल दे बैठा था मैं .
तुम थी कहां ये पता नहीं ,
पर दिल को अब भाने लगी थी ,
दूर थी बहुत मुझसे ,
पर करीब आने लगी थी .
एक बार फिर ,
हम साथ खड़े थे ,
और हमेशा की तरह ,
आइने से निगाहो को देख रहे थे .
तभी आइना मिलते निगाहो को देखमुस्काया ,
और कहने लगा ,
तेरे आने से मुझको ,
सुकून मिला , सुकून मिला .... शशांक विक्रम सिंह 'श्रीनेत'
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