Friday, July 12, 2019

सहमी आँखे


वो सहमी सी आँखे ,
होंठों पे नज़र का टिका ,
बिखरी ज़ुल्फ़ें ,
निगाहों को मेरा था जिसने रोका ।

अजब सी बेताबी ,
और बढ़ती बेचैनी ,
कैसे निगाहो को उलझा रही थी ,
दिल के धड़कनो को बड़ा रही थी ।

हर दफ़ा जब भी देखता उसको ,
नज़रें चुरा लेती ,
थमते धड़कनो के एहसास को ,
फिरसे बढ़ा देती ।

हर लम्हा अब ,
दिन सा लगने लगा ,
दरमियाँ जो थी हलचल हमारे ,
जब वो थमने लगा ।

रुकने को था सफ़रनामा ,
निगाहों के इस शोर का ,
बस तभी हुआ कुछ ऐसा ,
जिस पर नहीं उनका कोई ज़ोर था ।

वो मुस्कुराई ,थोड़ा शर्मआई ,
पहली दफ़ा जब कुछ कहने को आई ,
लगा अब दरमियाँ इश्क़ होने को हैं ,
जिसमें दिल खोने को है।

पर वक़्त को कुछ और था मंज़ूर ,
एक पल में जाने लगा जब वो दूर ,
मैं रोक नहीं पाया ,
दरमियाँ हो रही हलचल,
रुकने को था तब आया ।

चलो इस मोहब्बत को ख़्वाब समझ ,
हम भूल जाते हैं ,
एक दफ़ा फिर इन निगाहों से ,
इश्क़ करने जाते है ।।

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