Saturday, January 18, 2020

मोमबत्ती

आँखों में आँसू उसके ,
चहरे पर ख़ामोशी ,
हिम्मत से लड़ी थी “माँ” ,
हार जंग इंसाफ़ की आज घर लौटी ।

लाखों की भीड़ लिये ,
हम सड़कों पर आये थे ,
बलात्कारियों को फाँसी ,
कुछ ऐसे नारे लगाये थे ।

बदलते वक़्त के साथ ,
हम सब कुछ भूल गये ,
माँ को छोड़ अकेले ,
अपनी दुनिया में खो गये ।

मिला जो इंसाफ़ उस बेटी को ,
एक दरिंदा हुआ आज़ाद था ,
कुछ चंद पैसे और मशीन ,
लेकर “मालिक” से बना उस्ताद था ।

इंसाफ़ के इस लड़ाई मे ,
माँ उतरी है दलदल वाली खाई में ,
हर कोशिश में हार रही ,
फिर भी लड़ने को तैयार रही ।

आज जिनको सड़कों से ,
सत्ता मे लेकर आये थे ,
मालूम नहीं था चंद वोटों के लिये ,
वो इंसाफ़ रोकने आये थे ।

क्यूँकि “बेटी” हम सब की है ,
आओ उस माँ के पास जाते है ,
सड़कों पर क़ब्ज़े के इस दौर में ,
सत्ता की भूख मिटाते है ।


आओ सभी मिल कर फिर से,
सड़कों पर आते है ,
बुलंद कर आवाज़ अपनी ,
“मालिक” को जगाते है ।

माँ जिसको छोड़ दिया लाखों ने ,
आओ हम फिर उसका साथ निभाते है ,
बुझ गई मोमबत्तियों को छोड़ ,
उम्मीद और भरोसे का दिया जलाते है ।

आओ चलो सड़कों पर उतर कर ,
माँ का साथ निभाते है !!

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