Saturday, January 11, 2020

मालूम नहीं

तुझसे मोहब्बत हुई कब ,
कहाँ और कैसे ,
यक़ीन मानो .. मालूम नहीं ।

तेरी पहली मुलाक़ात ,
और उसमें हुई हर बात ,
और उस वक़्त के हालत ,
यक़ीन मानो .. मालूम नहीं ।

एक रोज़ फिर मिला था तुझसे ,
पर तुम वक़्त निकाल नहीं पाई ,
थी शायद कहीं जाने को आई ,
लेकिन कहाँ ?
यक़ीन मानो .. मालूम नहीं ।

कब चंद लम्हों की बातों को ,
रात छोटे लगने लगे ,
अजनबी से पहचाने लगने लगे ,
आख़िर क्यूँ ?
यक़ीन मानो ... मालूम नहीं ।

हर रात चाँद से पहले सोने वाला ,
तुम्हें बिना देखे अब सोता नहीं ,
पर ऐसा क्यू ??
यक़ीन मानो .. मालूम नहीं ।

जान कर भी जा रही जान ,
तेरी आँखों में डूब कर ,
तैरना मंज़ूर नहीं होता ,
क़सम से ?
यक़ीन मानो .. मालूम नहीं ।

ज़िंदगी भर ज़िंदगी के लिये ,
हम सब लूटा आये थे ,
ख़त्म उस सिलसिले को ,
आज ख़ुद कर आये थे ,
लेकिन क्यूँ ?
यक़ीन मानो .. मालूम नहीं ।।

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