Monday, May 25, 2020

सूखे पत्ते

मेरी यादों के बाग़ीचे में ,
कुछ पत्ते सुख कर गिर पड़े थे ,
कुचलने को जिसे राहगिर दिल के ,
पग पग पर खड़े थे ।

मौसम के बदलने से ,
सूरज के ढलने से ,
शाम के आने से ,
चाँद के जाने से ।

अब तक संभालें बिखेर पत्तों को ,
ख़ामोशी से उन्ही के पास खड़ा था ,
राहगिर को रोकने की ख़ातिर ,
ख़ुद को ज़ख़्मों से भर चुका था ।

दिल में ज़ख़्मों से अब ,
घाव गहरे होने लगे ,
तेरा ज़ख़्म टूटने का क्या कम था ?,
एक और घाव हम सहने लगे ।

तूने माना नहीं हमें कभी अपना ,
और ग़ैर तुझे जलाने लगे ,
टूट कर मुझसे जिस पल ,
तुम दूर जाने लगे ।

कौन कहता है पत्तों के बग़ैर ,
पेड़ पनप पाता है ,
पत्तों से उसकी मोहब्बत ऐसी ,
वो छांव और सुकून छोड़ जाता है ।

हज़ारों है पेड़ मुझ जैसे ,
और लाखों पत्ते ,
टूट कर बिखर जाते बहुत ,
कुछ झूठे कुछ सच्चे ।। 

1 comment:

Prabjeet sandhu said...

True feelings .😊🙏🏻