मुझे तुझसे इश्क़ का ग़ुरूर ,
तुझे उसमें खोने का सुरुर ,
मुझे तेरी यादों का सहारा ,
तुझे उसके लम्हों ने वारा ।
मैं उठ कर आज भी देखता तुझको ,
और तु भी उसे निहारती है ,
मैं ज़िंदा हु ख़ातिर तेरे ,
और तु उसपर जान वारती है ।
होती है बाँहों में अक्सर मेरे ,
बन कर तु एहसास ,
रहती है तु साथ उसके ,
हर दिन और रात ।
मेरे हर ज़िक्र में मौजूद तु ,
और तेरी ही बातें ,
चाँद से जा पुछ आ कभी ,
अभी कितनी और रातें ।
है ग़ुरूर जितना तुझमें ,
उसे पाने का ,
शायद उतना ही है मुझे ,
तुझमें खो जाने का ।
ग़ुरूर मिट भी जाये तो सही ,
मोहब्बत के रंग कैसे मिटाओगी ,
हर वो निशा जो मेरी मौजूदगी बताते है ,
कब तक उन्हें छिपाओगी ।
तुझे उसमें खोने का सुरुर ,
मुझे तेरी यादों का सहारा ,
तुझे उसके लम्हों ने वारा ।
मैं उठ कर आज भी देखता तुझको ,
और तु भी उसे निहारती है ,
मैं ज़िंदा हु ख़ातिर तेरे ,
और तु उसपर जान वारती है ।
होती है बाँहों में अक्सर मेरे ,
बन कर तु एहसास ,
रहती है तु साथ उसके ,
हर दिन और रात ।
मेरे हर ज़िक्र में मौजूद तु ,
और तेरी ही बातें ,
चाँद से जा पुछ आ कभी ,
अभी कितनी और रातें ।
है ग़ुरूर जितना तुझमें ,
उसे पाने का ,
शायद उतना ही है मुझे ,
तुझमें खो जाने का ।
ग़ुरूर मिट भी जाये तो सही ,
मोहब्बत के रंग कैसे मिटाओगी ,
हर वो निशा जो मेरी मौजूदगी बताते है ,
कब तक उन्हें छिपाओगी ।
1 comment:
Bhaiya kamal kr diya
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