Monday, May 25, 2020

ग़ुरूर

मुझे तुझसे इश्क़ का ग़ुरूर ,
तुझे उसमें खोने का सुरुर ,
मुझे तेरी यादों का सहारा ,
तुझे उसके लम्हों ने वारा ।

मैं उठ कर आज भी देखता तुझको ,
और तु भी उसे निहारती है ,
मैं ज़िंदा हु ख़ातिर तेरे ,
और तु उसपर जान वारती है ।

होती है बाँहों में अक्सर मेरे ,
बन कर तु एहसास ,
रहती है तु साथ उसके ,
हर दिन और रात ।

मेरे हर ज़िक्र में मौजूद तु ,
और तेरी ही बातें ,
चाँद से जा पुछ आ कभी ,
अभी कितनी और रातें ।

है ग़ुरूर जितना तुझमें ,
उसे पाने का ,
शायद उतना ही है मुझे ,
तुझमें खो जाने का ।

ग़ुरूर मिट भी जाये तो सही ,
मोहब्बत के रंग कैसे मिटाओगी ,
हर वो निशा जो मेरी मौजूदगी बताते है ,
कब तक उन्हें छिपाओगी ।

1 comment:

gaurav singh said...

Bhaiya kamal kr diya