Sunday, May 3, 2020

थप्पड़

फेरते उँगलियाँ गालों पर उसके ,
अनगिनत दफ़ा रहे होंगे ,
छुपे जज़्बात दिल के अक्सर ,
इस अदायगी से वो बयां करते होंगे ।

सुबह के शोर से पहले की ख़ामोशी ,
या रात के सन्नाटे का शोर ,
बन बैठी है ये उँगलियाँ .. क़सूरवार ,
आज कल ना जाने क्यूँ हर ओर ।

आज भी छुआ था गालों को उसके ,
उँगलियों ने थोड़ी ज़ोर से,
थे निशाँ ज़ख़्म के इस दफ़ा ,
लिये ख़ामोशी चारों ओर थे ।

जो लगते थे गले अक्सर ,
इस अदायगी के बाद ,
जाने लगे ख़ामोशी से दूर ,
दफ़नायें टूटे दिल के साथ ।

ना माँगा कभी मोहब्बत से अधिक ,
ना कभी चाहा किसी और को ,
छोड़ आई आज गलियाँ वो ,
संग उसे , उसके हाल छोड़ कर ।

कई दफ़ा एक लम्हे में ,
सब बिखर जाता है ,
अंदाज़े मोहब्बत में “ज़ुल्म” ,
कहाँ जगह पाता है ।

हाँ अक्सर हम ख़ुद को समझाने में ,
अपना दुःख सुनाने में ,
उसकी बात सुनना भुल जाते है ,
अनगिनत दफ़ा ऐसा ज़ुल्म कर जाते है ।

बेशक थोड़ा ही शोर रहाँ हो ,
उँगलियों का गालों पर उस रोज़ ,
पर ज़ख़्म पुराना सा लगता है ,
ये “थप्पड़” बहाना सा लगता है ।

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