Monday, June 1, 2020

ग़ज़ल

मेरी दिल के धड़कनो से पुछो ,
कैसा हाल हो चला है ,
एहसास जुड़े तुझसे ,
वो शब्दों में पिरो चुका है ।

स्याही तेरा एहसास ,
क़लम तेरे जज़्बात ,
आँखे तेरी वजह ,
और ये कायनात ।

तेरे ज़िक्र भर होने से ,
सब बदल सा जाता है ,
थमने को आ चुके दिल को,
फिर से वो धड़काता है ।

ना कभी हम होते साथ ,
ना कभी बहुत दूर ,
यक़ीनन है मजबूरियाँ बहुत ,
पर क्यूँ ? बताना ज़रूर ।

मेरे हर शब्द पर हक़ तेरा ,
दिल पर तेरा राज़ ,
सजाते जिन्हें लफ़्ज़ों में पिरो कर ,
हर दिन और रात  ।

मुमकिन है की हम ना मिले कभी ,
फिर भी तुम्हें लिखता जाऊँगा ,
तुम बनोगी ग़ज़ल मेरी ,
स्याही और क़लम से ,
हर दफ़ा सजाऊँगा ।

गर ना मिले खत मेरा कभी ,
आख़िरी समझ लेना ,
क्यूँकि याद रहे धड़कनो के ,
आख़िरी शोर पर भी ,
हक़ सिर्फ़ तेरा ।

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