तेरी हँसी मे बसी ख़ुशी ,
और आँखों में ग़म ,
मंज़र है बिछड़ने का आज ,
और वक़्त है काफ़ी कम ।
अनगिनत सवाल और चंद जवाब ,
अधूरे ख़्वाब और अल्फ़ाज़ ,
कैसा साज कैसा राज़ ,
चंद लम्हों का अधूरा साथ ।
इतने बरसात के बाद भी ,
क्यूँ इश्क़ में भीग नहीं पाये ,
मानो मिलने के लिये नहीं ,
बिछड़ने के लिये हर बार पास आयें ।
क्यूँकि अब तय है सफ़र ,
और मंज़िल भी बेहद पास है ,
दूर होते हम और हमारी यादें ,
शायद अंत का ये आग़ाज़ है ।
कभी हर लम्हे में थे हम ,
आज ख़्यालों में भी नहीं ,
कभी जवाब थे हम ,
अब सवालों में भी नहीं ।
कभी सुबह होती थी हमसे ,
और हमसे ही रात ,
ग़म की वजह भी हम ,
और ख़ुशियों की सौग़ात ।
आख़िरी दफ़ा टूट कर मुझसे ,
उनसे जुड़ने वो जा रहे है ,
हम हैं ख़फ़ा ज़िंदगी से ,
और वो मुस्कुरा रहे है ।
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