Saturday, August 8, 2020

ख़फ़ा

तेरी हँसी मे बसी ख़ुशी ,

और आँखों में ग़म ,

मंज़र है बिछड़ने का आज ,

और वक़्त है काफ़ी कम ।


अनगिनत सवाल और चंद जवाब ,

अधूरे ख़्वाब और अल्फ़ाज़ ,

कैसा साज कैसा राज़ ,

चंद लम्हों का अधूरा साथ ।


इतने बरसात के बाद भी ,

क्यूँ इश्क़ में भीग नहीं पाये ,

मानो मिलने के लिये नहीं ,

बिछड़ने के लिये हर बार पास आयें ।


क्यूँकि अब तय है सफ़र ,

और मंज़िल भी बेहद पास है ,

दूर होते हम और हमारी यादें ,

शायद अंत का ये आग़ाज़ है ।


कभी हर लम्हे में थे हम ,

आज ख़्यालों में भी नहीं ,

कभी जवाब थे हम ,

अब सवालों में भी नहीं ।


कभी सुबह होती थी हमसे ,

और हमसे ही रात ,

ग़म की वजह भी हम ,

और ख़ुशियों की सौग़ात ।


आख़िरी दफ़ा टूट कर मुझसे ,

उनसे जुड़ने वो जा रहे है ,

हम हैं ख़फ़ा ज़िंदगी से ,

और वो मुस्कुरा रहे है ।

No comments: