Saturday, August 29, 2020

महसूस

आज के इस अकेलेपन में ,

जब रिश्ते टूट रहे ,

मिल रहे कुछ नये पराये ,

और कुछ अपने पुराने छूट रहे ।


हर बदलते शाम के साथ ,

चाँद भी कुछ अनजान है ,

कभी चमकते जुगनू ,

कभी तारों से रोशन होता आसमान है ।


रात हो अँधेरी, या ,

हो उजालों का पहेरा ,

एक ख़ूबसूरत ख़्वाब ,

होता एहसास और गहरा । 


जुगनु ,

मीलों दूर कहीं खो गये तुम ,

दिन के उजाले में सो गये तुम ।


बस इस उजाले और अँधेरे में ,

उलझे हुए लाखों जज़्बात है ,

महसूस होती मौजूदगी जिसकी ,

वो धरती और मैं आकाश हैं ।

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