Monday, February 1, 2021

मजबूर

है अनगिनत सवाल जिसके ,
मालूम नहीं जवाब उसके ,
फिर भी मुस्कुराती है ,
मजबूर है जरूर लेकिन नहीं दिखती है ।

ख्वाबों का लिए गुलदस्ता ,
और वक्त से मुरझाते फूल ,
नहीं जान पाता कोई ,
आखिर क्यों है वो मजबूर ।

दिल में बस जाना या दिल में बसाना ,
है मुमकिन बहुत और आसान ,
गर देख ले कोई उसकी निगाहों में  ,
मजबूरी में भी मुस्कुराती है वो बेजान ।

खूबसूरत जो बनाना जानती है ,
लम्हों को सजाना जानती है ,
जानती है ख्वाइशों को करना पूरा ,
फिर भी रह जाता हैं कुछ अधूरा ।

मजबूर है या है कोई मजबूरी ,
खुशियों से क्यों है मीलों दूरी ,
गर मिल जाए जवाब बता जाना ,
मजबूरी ना हो तो ,
एक पल के लिए ही सही .. मुस्कुराना ।।

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