Wednesday, March 30, 2022

इश्क़ की किताब

मेरे इश्क़ के किताब के ,
महज़ एक शब्द से ,
कब वो किताब बन गया ,
मेरे हर गम हर खुशी का ,
अब वो हिसाब बन गया ।

था नहीं मालूम सफ़र का मुझे ,
फिर भी मुसाफ़िर खुद को ,
मैं बुलाता था ,
बिना मंजिल के भी ,
अजनबी रास्तों पर रुक जाता था ।

ठहर कर मुसाफ़िर ने ,
खुद के सच को झुठला दिया ,
पड़ कर शिद्दत से मोहब्बत में उसके ,
खुद को भी भुला दिया ।

क्या इश्क़ में हर कोई ,
ऐसे ही सब लुटाता हैं ,
या फिर इश्क़ में मुसाफ़िर सा ,
हर कोई ठहर जाता है ।

इश्क़ के किताब का शब्द ,
अब खुद किताब बन गया ,
इश्क़ में हो कर भी बर्बाद ,
इश्क़ को आबाद कर गया ।

इश्क़ की दास्तां बन कर मुसाफ़िर ,
मैं दुनिया को सुना रहा हूं ,
किताब के हर शब्द को ,
सिर्फ़ अपना बता रहा हूं ।

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