Thursday, March 31, 2022

कागज़ के फूल

और जब निगाहें मेरी ,
उनके दीदार को तरस रही थी ,
हर दफा गुजर कर भी हमसे ,
एक पल भी वो ना ठहर रही थी ।

कागज़ का फूल ओढ़े ,
वो मेरे अरमानों को कुचल रही थी ,
मानों छोड़ कर मुझे ,
किसी और से मिल रही थी ।

देखा जब एक और दफा ,
निगाहों ने दम तोड़ दिया ,
इश्क़ की इजाज़त नहीं ,
बस ये जानते ही ,
दिल ने धड़कना छोड़ दिया ।

कागज़ के फूल सा ,
अब कोई और उसे छिपा रहा है ,
पूछने पर पहचान जो ,
उसका महबूब बता रहा है ।

टूट कर दिल मेरा ,
काग़ज़ के फूल से साथ पड़ा हैं ,
मेहबूब जिसका ,
हम दोनों को कुचलने को ,
राहगीर बन कर खड़ा है ।

क्या हर इश्क़ करने वाले को ,
ऐसे ही सताया जाता है ,
बना कर महबूब शिद्दत से ,
रकीब के हाथों कत्ल कराया जाता है ।

कागज़ के फूल सा दिल मेरा ,
पड़ा हैं सुख कर जलने को ,
छोड़ कर महबूब का दामन ,
ख़ाक में मिलने को ।।

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