Thursday, February 17, 2022

जिस्मानी इश्क़

ना परवाह जिसे ,
दिल के मासूमियत की ,
ना उससे जुड़े ,
शख्स के अहमियत की ।

उसे तो इश्क़ में बस ,
जिस्म नज़र आता हैं ,
अक्सर जो किसी के भी,
इश्क़ में पड़ जाता है ।

भूख नहीं मिटती जिसकी ,
जिस्म के मिल जाने तक ,
निभाता शिद्दत से इश्क़ ,
जिस्म में बस जाने तक ।

उसकी निगाहों का क्या कहना ,
उसे तो सब एक से लगते हैं ,
दिल का तो पता नहीं ,
बस जो जिस्म देखते रहते हैं ।

भला क्यों नहीं वो रुह से ,
कभी दिल लगाता हैं ,
जिस्म के बदले ,
रूह में बस जाता हैं ।

ख़ैर इश्क़ तो वो भी निभाता है ,
पर साथ नहीं चल पाता है ,
जिस्म की चाहत लिए बैठा ,
भला रूह कहां देख पाता है ।।

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