Friday, April 1, 2022

अधूरा इश्क़

हर रोज़ इश्क़ के जंग में ,
कुछ तो नई बात होती है ,
मुश्किलों से घिरी जिंदगी ,
फिर भी मेरे साथ होती है ।

सपने जिसके चांदनी रात से ,
मैं उसका अमावस की रात ,
बन कर जिंदगी में आया हूं ,
संग सिर्फ़ अंधकार लाया हूं ।

नाज़ुक कड़ियों को जोड़ कर ,
एक रास्ता दोनों ने बनाया है ,
पर फुरसत के दो पल भी ,
कहां नसीब हो पाया है ।

हर रोज़ छूटने के डर से ,
अब और सताने लगा हूं ,
जिंदगी के आंसुओ से ,
खुद को भीगाने लगा हूं ।

खुश किस्मत होंगे चंद मुझ जैसे ,
जिन्हें तुम जैसा कोई मिलता होगा ,
हर रोज़ ज़ख्म खा कर भी ,
जो दूसरों के जख्म भरता होगा ।

अब तुमसे मेरी सुबह ,
और तुमसे ही शाम है ,
इश्क़ तुमसे ए जिंदगी ,
अब खुलेआम है ।।

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