Wednesday, May 25, 2022

फरेब इश्क

आज फिर मिला मैं उससे ,
बिछड़ने के बाद ,
सब कुछ हो उठा जिंदा ,
उसके मिलने के साथ ।

मिट गया था हर ज़ख्म,
और अब वो मुस्कुरा रही थी ,
किसी गैर के बाहों को ,
अपना घर बता रही थी ।

इश्क़ में हो कर भी किसी के ,
वो इश्क़ तलाशती रहती थी ,
ये अदा आज भी उसकी ,
हुबहु पहले जैसी थी ।

है खड़ा वो पास उसके ,
मुझ जैसे बर्बाद होने को ,
चंद रोज के बेवफाई के बाद ,
एक रोज खाक होने को ।

मैं आज भी तन्हा ,
और बेकार पड़ा हूं ,
इश्क़ में बर्बाद हो कर ,
किसी चौराहे पे खड़ा हूं ।

मालूम नहीं मेरे हिस्से ,
कब वो गैर आयेगा ,
जो इस जिंदा लाश से ,
शिद्दत से इश्क़ निभायेगा ।

चंद खुशनसीब ही इश्क में,
हर रोज़ क़ातिल बन पाते हैं ,
साँसे छीन ,ज़िंदा लाश की
किसी मुर्दे से दिल लगाते हैं ।।

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