Thursday, May 26, 2022

पहेली का दरवाज़ा

एक रिश्ता है अल्फाज़ का ,
उलझी जिसकी पहेली हैं,
दुनिया से बिलकुल परे ,
वो किसी खिड़की पे खड़ी अकेली है ।

बारिश की हर बूंद जिसके ,
मन को भीगा रही हैं,
लौट कर फिर से वो ,
अल्फाज़ में उलझी जा रही है ।

कल्पना के इस सफ़र में ,
गर कोई उसका साथी हैं,
महज मौजूदगी ही जिनकी ,
दोनों के लिए काफी है ।

अल्फाज़ के लिए वो पहेली ,
पहेली के लिए उसके अल्फाज़ हैं ,
क्या खूब छिपा लेते दोनों ,
एक दूसरे के जज़्बात हैं ।

है बहुत कुछ आज भी अधूरा ,
वक्त जो पूरा कर जाएगा ,
खोल कर दरवाज़ा जब कभी ,
वो दिल में उतर जाएगा ।

खोल कर दरवाजा ,
पहेली आज पहले ही खड़ी हैं ,
ना कोई हलचल ना हड़बड़ी ,
वो बिल्कुल खामोश पड़ी है ।।

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