Friday, July 18, 2014

बेक़रार निगाहें

इट वाज वंडरफूल हॉस्टल नाईट इन वन ऑफ़ द बेस्ट इंस्टीटूशन ऑफ़ इंडिया ... एक कविता 'आप' को भी समर्पित क्योंकि .....इन बेक़रार निगाहों को अब भी तेरा इंतज़ार है ....

ना जाने कितने रोज़ बाद ,
हम फिर उन राहों पर चल पड़े थे ,
तुम साथ नहीं थी इस बार ,
फिर भी तुम्हें सोच कर ,
हम यूं ही हस लिए थे .

कुछ दूर चलने पर ठिकाना मिल गया ,
पर मंज़िल बहुत दूर थी ,
और बेक़रार निगाहों में ,
तुझे पहले , देखने की लगी होड़ थी .

उस शोर शराबे में भी ,
हर ओर सन्नाटा सा लग रहा था ,
रंगीन महफ़िल के उजाले में भी ,
निगाहों में हर ओर अँधेरा बस रहा था .

ये बेक़रार निगाहें ,
बस तुझे ही ढूंढे जा रही थी ,
नजर टिकाये उन राहों पर ,
एक दूसरी को ही ताक रही थी .

पता चला तुम्हारे किसी ख़ास से ,
कुछ पल पहले तुम वहाँ आई थीं ,
पर ना जाने क्यों ,
ये बेकरार निगाहें तुम्हें ढूंढ नहीं पाई थी .

मेरे हर गम - हर ख़ुशी में,
उस कुछ पल के ज़िन्दगी में ,
तेरा भी नाम जुड़ा है ,
कन्वेंशन सेन्टर से शुरू हुए सफ़र में ,
तेरे लिए कुछ अधूरा पैगाम पड़ा है .

ये बेक़रार निगाहें ,
कुछ कहने को बेताब हैं ,
पर वास्तविकता में तो तू ,
महज़ एक ख़्वाब है .

इंतज़ार है उस चहेरे का ,
काश वो फिर सामने आ जाये ,
इन बेक़रार निगाहों को ,
जो कहना था वो कह जाये .

इंतज़ार अब तेरे आने का हो रहा है ,
जहां से शुरू हुआ था सफ़र ,
उन्हीं राहों पर नजरें टिकाये ,
वो पलकें भिगो रहा है .

इन बेक़रार निगाहों को ,
अब भी तेरा इंतज़ार है ,
तेरी खूबसूरत आँखों से मिलने को ,
वो भी बेक़रार है .

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