Friday, July 18, 2014

एक मुस्कान

अरसो बाद फिर कोई ,
दिल को भाया था ,
करीब होकर भी जिससे ,
दूर मैंने पाया था .

पहली दफा जो देखा था उसे ,
बस देखता ही रह गया ,
सर्द हुई आँखों को ,
सेकता ही रह गया .

उलझते दिल के तार को ,
अभी बस सुलझा ही रहा था ,
की साथ उनके वो आ गई ,
लिए हाथो में माला फूलों की ,
समां को महका गई ,
उलझते दिल के तार को ,
और उलझा गई .

जैसे-जैसे वो आगे बढ़ रही थी ,
आशिक़ी खुदमें तंज कस रही थी ,
काश ये लम्हा यू ही थम जाए ,
बात जो बननी थी वो बन जाए .

ना वो रुके ना लम्हा ,
सब आगे बढ़ गए ,
और हम जाग कर ख्यालो से ,
लम्हों को समेटते रह गए .

देखा कितनी दफा उन्हें ,
पर वो देखने से कतराती रही ,
हम जानते है ,
कुछ हद तक एक दूसरे को ,
वो इस सच को झुठलाती रही .

देखते ही देखते कब हँसी उनकी भा गई ,
पता भी ना चला ,
अक्सर हाथ फ़ोन पर देखकर ,
दिल कई बार जला ,
पर खो कर खूबसूरत मुस्कान में ,
जलने के जख्म का पता ना चला .

तेरी आँखों  को नाम भी देखा ,
तेरा वो बिछड़ने का गम भी देखा ,
पर दिल नहीं घबराया ,
तेरे कुछ रोज बाद आने का ,
खबर जो था उसने पाया .

आखिरकार तुम फिर आई थी ,
पर ना जाने क्यूँ ,
अपनी खुशिया संग नहीं लाई थी .

ना वो उल्लास , ना उमंग था ,
मानों ज़िन्दगी ने कसा कोई व्यंग था ,
फिर भी उम्मीद थी ,
वो मुस्कान चेहरे पर आएगी ,
उतार कर मायूसी की चादर ,
वो खिलखिलाएगी .

हर बार की तरह ,
एक बार फिर उम्मीद टुटा था ,
बेवजह ही वो सिंटेन मे ,
मायूस चहेरा लिए बैठा था .

ना जाने ये रूठा कब मान जाएगा ,
बेसब्री से इंतज़ार था जिस मुस्कान का ,
वो अपने चहरे पे लाएगा ,
ना जाने एक मुस्कान का इंतज़ार ,
हमे अभी कितना और सतायेगा ..

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