Saturday, December 14, 2019

ख़ैर

क्यूँकि मोहब्बत होना ज़रूरी है ,
टूटते दिल की मजबूरी है ,
नहीं तो पत्थरों से चिंगारी जलती है ,
लगती नहीं आग सूरत बदलती है ।

फ़ासले जो फ़ैसलों से बढ़ने लगे थे ,
जान कर भी वो अजनबी कहने लगे थे ,
मान कर सच उनके जज़्बात को ,
मोहब्बत से हम रूठने लगे थे ।

सिलसिला शुरू हुआ था जो कल ,
कल क्यूँ थमने को आया था ,
आज़ाद आवारा दिल मेरा ,
पिंजड़े में क़ैद हो आया था ।

ख़ैर हर दफ़ा जीत ले दिल कोई ,
ये ज़रूरी नहीं ,
लुटेरे बहुत है इस जहाँ में ,
कोई किसी से कम नहीं ।

क्यूँ तेरी मौजूदगी अब रुलाती है ,
ख़ामोशी में भी वो चिल्लाती है ,
ना रहना तेरा बेहतर होगा ,
इस एहसास से दिल बेख़बर होगा ।

क्यूँकि ख़ैर नहीं ...ख़ैर क्या कर पायेंगे ,
उलझ कर जज़्बातों के खेल में ,
कभी राजा , कभी वज़ीर ,
तो कभी सिपाही बन जायेंगे ।।

1 comment:

Chanchal said...

Bhut pyari hai sir poem