Sunday, December 22, 2019

स्त्री

सेम डिग्री सेम पोज़िशन ,
डिस्क्रिमिनेशन का “अजेंडा” वाला फ़ेज़ है ,
कह देते आकर दो चार लाइन ,
बेवजह हो रहे वो चेप है ।

शादी बच्चे कर लूँगी मैं ,
किसकी क्या एज है ,
मालूम है मुझे सब ,
आज़ाद हु नहीं कोई “केज” है ।

मेरी मौजूदगी मौलूम ना हो ,
ऐसा मुमकिन कहाँ हो पाता है ,
कभी माँ , कभी बेटी , कभी बहू ,
वो कई रूप में मुझे देख पाता है ।

उसकी फ़िक्र जब भी अपनो को सताती है ,
बन जवाब सवालों का वो हँसाती है ,
मेरे अकेले होने पर भी सब साथ होते है ,
मेरी नींद से ही वो सोते है ।

मेरी पहचान दुनिया ख़ूब जानती है ,
सवालों का जवाब मुझे मानती है ,
हैं अपने इतने मेरे ,
दुनिया को क्या दिखाना ,
सिंगल हु या कमिटेड ,
जान कर क्या करेगा ज़माना ।

छू ले मुझे कोई ग़लती से ,
ये ग़लतियाँ नहीं होती ,
बेवजह ही उलझ कर जज़्बातों में ,
ग़ैरों को अपना नहीं लेती ।

पढ़ लिख कर आज़ाद बनी हु ,
भरोसा अपनो का लिये खड़ी हु ,
शादी से भागूँगी नहीं ,
प्यार के इस बंधन में बँधने को ,
तैयार खड़ी हु ।

जो भी हो डिग्री मेरी ,
हर ज़िम्मेदारी निभाऊँगी ,
कम्पैरिजन कर के अपना अपनो से ,
रिश्ते नहीं उलझाऊँगी ।

वो मिल कर आये किसी से ,
या मैं किसी से मिलने जाऊँ ,
फ़र्क़ नहीं पड़ता है ,
एक दूसरे को समझ कर ही ,
परिवार चलता है ।

मेरे कपड़ों की शिकायत होती नहीं ,
ना ही कोई नज़रें मेरे जिस्म पर घुमाता है ,
बेवजह उलझती नहीं मैं किसी से ,
ना एडवाईज़री कोई मुझ तक लाता है ।

मेरे घर से होगी शुरुआत ,
सिखेगा बच्चा मेरा ,
वो घूर कर निगाहे नहीं घुमायेगा ,
सम्मान से नज़रें मिलायेगा ।

आओ बन कर आदर्श घरों का ,
परिवार अपना बचाते हैं ,
देवी मानते अपनो को ,
दिल से अपनाते है ।

आओ “स्त्री” का फ़र्ज़ निभाते हैं ,
आओ ये दुनिया बचाते हैं ,
ग़ैरों को अपना बनाते है ,
आओ कुछ नया कर जाते है ।

मैं बेटी बन पापा की ताक़त हो जाती हु  ,
पत्नी बन पति की ख़ुशियाँ हो जाती हु ,
बहू बन घर सजाती हु ,
माँ बन सबकी इज़्ज़त करने की ,
परवरिश दे जाती हु ।

और हाँ रही बात ,
मेरे आज़ाद होने की ,
मैंने चुना वो जहाँ है ,
क़ैद होती नहीं बेटियाँ वहाँ है ।।

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