मोहब्बत की मइयत से निकलने के बाद ,
रुख़सत के ज़ख़्म भरने के साथ ,
कुछ तो अधूरा रह गया था ,
शायद दिल धड़कनो से छूटते वक़्त ,
कुछ कह गया था ।
जिन रास्तों पर नंगे पाओ ,
अक्सर हम चला करते थे ,
जिन रास्तों पर बिन मरहम ,
ज़ख़्म यू ही भरा करते थे ।
आज उसके ख़्याल से ही ,
ज़ख़्म उभर आते है ,
मरहम लगने पर ना जाने क्यूँ ,
और गहरे ज़ख़्म हो जाते है ।
सूरज से पहले तेरी रोशनी ,
अक्सर हमें जगाती थी ,
चाँद बन रात के अंधेरे में ,
ख़्वाबों को रौशन कर जाती थी ।
तेरे ज़ुल्फ़ों के छाओ में अक्सर ,
बैठा ख़ुद को पाता था ,
वजह नहीं होती थी जब कोई ख़ास ,
बेवजह तु वजह बन जाता था ।
बिछड़ कर तुझसे , तेरी यादों से ,
हर झूठे सच्चे वादों से ,
अब दूर जा चुका था ,
ख़ुद को ख़ुद में छुपा चुका था ।
आज ये कैसा ख़्वाब सा सच ,
मैं देख रहा ,
सूरज से पहले तेरी रोशनी ,
मुझे जगाने आई है ,
ख़त्म सी होती मालूम ,
लगती ये तन्हाई है ।
कुछ तो है नाता गहरा तेरा मेरा ,
वरना दफ़्न हुए मुर्दे को ,
कौन ज़िंदा कर पाता है ,
धड़कनो को छोड़ चुके दिल से ,
कौन धड़कनो को धड़काता है !
रुख़सत के ज़ख़्म भरने के साथ ,
कुछ तो अधूरा रह गया था ,
शायद दिल धड़कनो से छूटते वक़्त ,
कुछ कह गया था ।
जिन रास्तों पर नंगे पाओ ,
अक्सर हम चला करते थे ,
जिन रास्तों पर बिन मरहम ,
ज़ख़्म यू ही भरा करते थे ।
आज उसके ख़्याल से ही ,
ज़ख़्म उभर आते है ,
मरहम लगने पर ना जाने क्यूँ ,
और गहरे ज़ख़्म हो जाते है ।
सूरज से पहले तेरी रोशनी ,
अक्सर हमें जगाती थी ,
चाँद बन रात के अंधेरे में ,
ख़्वाबों को रौशन कर जाती थी ।
तेरे ज़ुल्फ़ों के छाओ में अक्सर ,
बैठा ख़ुद को पाता था ,
वजह नहीं होती थी जब कोई ख़ास ,
बेवजह तु वजह बन जाता था ।
बिछड़ कर तुझसे , तेरी यादों से ,
हर झूठे सच्चे वादों से ,
अब दूर जा चुका था ,
ख़ुद को ख़ुद में छुपा चुका था ।
आज ये कैसा ख़्वाब सा सच ,
मैं देख रहा ,
सूरज से पहले तेरी रोशनी ,
मुझे जगाने आई है ,
ख़त्म सी होती मालूम ,
लगती ये तन्हाई है ।
कुछ तो है नाता गहरा तेरा मेरा ,
वरना दफ़्न हुए मुर्दे को ,
कौन ज़िंदा कर पाता है ,
धड़कनो को छोड़ चुके दिल से ,
कौन धड़कनो को धड़काता है !
1 comment:
Superb piece of creation 👌
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