Wednesday, April 22, 2020

दो दिल

धड़कन के धड़कने से ,
दिल हम लगा बैठे ,
था मालूम नहीं पता ,
फिर भी घर बसा बैठे ।

एक से लगते है हम ,
और एक सा धड़कता दिल भी ,
फिर भी मुश्किलें ना कम है ,
ज़माने को तो सिर्फ़ ,
मेरी ही मोहब्बत का ग़म है ।

क्यूँकि तुम अच्छी नहीं लगती ,
जैसे औरों को भा जाती हो ,
मालूम नहीं क्यू ,
धड़कता नहीं दिल वैसे ,
जैसे दिलों मे बस जाती हो ।

याद है आज भी मुझे ,
उसकी वो पहली मुस्कान ,
जिस पर हम सब लुटा बैठे ,
दिल से दिल लगा बैठे ।

ना बिखरी है ज़ुल्फ़ें उसकी ,
ना ही आँखो पर काजल ,
सजता है बिलकुल मुझ जैसे ,
कहती दुनिया जिसे पागल ।

फ़र्क़ पड़ता है क्या ,
अलग सा होना जिस्मों का ,
क्यूँकि इश्क़ को चाहिये ,
सिर्फ़ दो दिल , धड़कनों के साथ ।

बहुत हुई लैला और मजनूँ की जोड़ी ,
अब हम भी क़िस्से कहानियों में आयेंगे ,
सिर्फ़ एक होगी पहचान हमारी ,
 “दो दिल” जिससे जाने जायेंगे ।

हाँ दो जिस्म एक से ,
मोहब्बत करते जायेंगे ,
होगी ख़ूबसूरत कहानी हमारी भी ,
दुनिया तक लेकर जिसे हम आयेंगे ।

हाँ दो जिस्म एक से ,
मोहब्बत करते जायेंगे ।। 

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