Wednesday, April 8, 2020

फुलझड़ी

रात के अंधेरे मे ,
जब चाँद बादलों में छिपने लगा ,
थमते शोर के साथ ,
मौसम भी सर्द पड़ने लगा ।

आग लगी कही दूर नज़र आई ,
रोशनी जिसकी जलती बुझती ,
आँखो से अंधेरे के छटने की ,
उम्मीद थी संग ले आई  ।

कुछ जुगनुओं के चमकने से ,
जो अब तक रात सुनहरी लगती थी ,
ख़्वाबों में अक्सर आकर ,
हुस्ने मलिका हमसे मिला करती थी ।

इस जलते बुझते रोशनी के पीछे ,
कोई ख़ूबसूरत सी परी थी ,
हाथों मे लिये फुलझड़ी ,
वो मेरे सामने ख़ामोश खड़ी थी ।

चमकते सूरत ने उसके ,
जज़्बातों पर क़ब्ज़ा सा कर लिया ,
जलते बुझते फुलझड़ी ने उस अंधेरे में ,
रात को रोशनी से भर दिया ।

श्वेत चादर में लिपटी हो जो रोशनी के ,
होंठों पर लिए हल्की सी मुस्कान ,
आँखो में चमकता नूर हो जिसके ,
फुलझड़ी सी है वो दिल-ए- नादान ।

मानो ख़्वाब होने को था पुरा ,
रह ना जाये कोई एहसास अधूरा ,
ख़ातिर उसके हम एक और दफ़ा ,
हड़बड़ी कर बैठे थे ।

बुझ जाती है फुलझड़ी ,
कुछ देर चमकने के बाद ,
ना जाने कैसे हम ,
ये भुल बैठे थे ।

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