मालूम नहीं फिर ये रात ,
कब लौट कर आयेगी ,
जुगनू सी चमकती हँसी तेरी ,
होंठों पर फिर जगमगाने आयेगी ।
फिर भी तेरे संग बीते हर लम्हे को ,
ख़ूबसूरत हम बनायेंगे ,
अल्फ़ाज़ो से ही सही ,
तेरा श्रिंगार कर जायेंगे ।
होगी और भी ख़ामोशी शायद उस रोज़ ,
और आसमा भी ख़ामोश पड़ा होगा ,
देखने को तेरे चहरे पर हँसी ,
चाँद भी तरस रहा होगा ।
माना की है ना रिश्ता कोई ,
ना ही कोई जज़्बात है ,
फिर भी ना जाने हो कर भी दूर ,
लग रहा तु पास है ।
बीत गया वो वक़्त भी ,
और ढेरों एहसास ,
चंद ख़ुशियों के लम्हों की ,
देकर तुझको सौग़ात ।
हर शाम के ढलते रात की ओर ,
चमकता चाँद और तारे हर ओर ,
जुगनू सा मन बन जाता है ,
ढूँढने तुझे फिर निकल जाता है ।
1 comment:
Very nice bhaiya��
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