ये जंग है ख़्वाबों की ,
ख़्वाबों के संग ,
टूटते बिखरते बिछड़ते ,
बदलते कई रंग ।
हौसला भी है वही ,
और जज़्बा भी ख़ूब ,
मौजूद हर मोहरा मैदान में ,
कोई घोड़ा कोई ऊँट ।
क्यूँकि जीतनी है जंग ,
हर बार हार कर भी ,
बस मैदान में है डट जाना ,
मुश्किल मगर मुमकिन है निशाना ।।
हर सुबह उठ कर ,
ख़्वाबों की ओर दौड़ जाते है ,
क्या हुआ जो नहीं मिली मंज़िल ,
ढूँढने रास्ता फिर सो जाते है ।
बस रहा भरोसा ख़ुद पर ,
हौसला नहीं डगमगायेगा ,
ख़्वाबों को सच होने से ,
कौन रोक पायेगा ।
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